Tuesday, 6 March 2018

Indian freedom fighters

स्वंतत्रता सेनानी
 
 
१>आगरकर, गोपाल गणेश (१८५६-९५):-------
गोपाल गणेश महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्राण थे। एवं एक पत्रकार ,समाजसुधारक तथा महान राष्ट्रवादी थे।आपने मराठा और केसरी के संपादक रहे। १८८८ में आपने समाज सुधारक के अपने विचारो को लोकप्रिय बनाने के लिए साप्ताहिक सुधारक नामक पत्र निकालना प्रारंभ किया।आपने जाती और अस्पर्शयता की निंदा की तथा लड़के और लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र बढ़ाने के लिए संघर्ष किया।
 
२>अने, माधव श्री हरि (१८८०-१९६८):---------
माधव जी बरार के राजनेता तथा दक्षिणपंथी कांग्रेसी थे।इन्होंने उच्चतम शिक्षा प्राप्त की तथा अध्यापक के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया।आप कांग्रेस कार्यकारी समिति के सदस्य भी रहे और सविनय अवज्ञा आंदोलन के अंतर्गत १९३० में आपको गिरफ्तार कर लिया गया।आप १९२४ से १९३० तक इंडियन होम रूल लीग के उपाध्यक्ष रहे तथा १९३५ में विधान मण्डल के सदस्य भी रहे।१९२६ में स्वराज पार्टी प्रत्युत्तरदायी गट में शामिल हो गए।आप १९३५ में साम्प्रदायिक अधिनिर्णय-विरोधी समिति के महासचिव बने। १९४१ में गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद के सदस्य बने, किन्तु महात्मा गांधी के आमरण अनशन के प्रति सरकार के द्रष्टिकोण के विरोधी में १९४३ में त्यागपत्र दे दिया। १९४३-४७ तक आप सीलॉन में भारत के प्रतिनिधि रहे।आप सविधान सभा के सदस्य रहे तथा स्वाधीनता के बाद संसद के भी सदस्य रहे।
 
३>बी.आर.अम्बेडकर (१८९१-१९५६):----------
आप जीवन भर दलित वर्गो के नेता रहे और सदा अछुतो की नैतिक तथा भौतिक उन्नति के लिए कार्य किया। आप महान विव्दान थे तथा लन्दन से एम.एस.सी तथा डी.एस.सी की उपाधियाँ प्राप्त की।आप पेशो से विधिवेन्त और समान रूप से महान सामाजिक कार्यकर्ता,राजनीतिज्ञ,लेखक तथा शिक्षाविद थे।१९२४ में आपने दलित वर्ग संस्थान की स्थापना की तथा १९२७ में समाज समता संघ की स्थापना की, ताकि अछुतो और स्वर्ण हिन्दुओ में समाजिक समानता के संदेश का प्रचार किया जा सके।आपने निम्न जातियो को समानता का स्तर दिलाने के लिए अनेक आंदोलन चलाए।आप अंतरिम सरकार में विधि मंत्री तथा सविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष भी चुने गए थे।
 
 
४>आमिर चन्द्र (१८६९-१९१५):-----------------
आप उदभट क्रांतिकारी थे।फरवरी १९१४ में आपको लाहौर बम काण्ड तथा दिल्ली षड्यन्त्र केस (वाइसराय लार्ड हार्डिंग की हत्या करने की योजना) के सन्दर्भ में गिरफ्तार किया गया था।मृत्यु-दण्ड दिए जाने पर ८मई.१९१५ को आपको फांसी दे दी गई।
 
 
५>एम,ए.डॉ अन्सारी (१८८०-१९३६):------------
चिकित्सा के क्षेत्र में उपाधि प्राप्त डॉ. अन्सारी ने १९१२-१३ में टर्की के अखिल भारतीय चिकित्सा मिशन का संयोजन किया।बाद में इन्होंने होम रूल लीग के आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।१९२० में आप मुस्लिम लीग के अध्यक्ष चुने गए।आपने खिलाफत होम रूल तथा असहयोग आंदोलनों में भाग लिया।१९२० में आपने राष्ट्रवादी शैक्षिक संस्थान, जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की।
 
 
६>एस.सुबहरणयम अय्यर (१८४२-१९२४):------------
आप सुप्रसिध्द वकील,न्यायाधीश तथा १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापको में थे।इन्हें सामान्यतया दक्षिण भारत के महान वयोव्रध्द व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।इन्होंने सितम्बर १९१६ में श्रीमती एनी बिसेन्ट व्दारा स्थापित अखिल भारतीय होम रूल लीग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया।मद्रास विश्वविधालय के उप-कुलपति नियुक्त होने वाले यह प्रथम भारतीय थे।
 
 
७>आसफ अली (१८८८-१९५३):--------------
आप एक राष्ट्रवादी मुसलमान और स्वतन्त्रता सेनानी थे, आपको अनेक बार गिरफ्तार किया गया था।आप कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य भी रहे।१९३५-१९४७ तक केंद्रीय विधान मण्डल के सदस्य, १९४६-१९४७ में भारत की अंतरिम सरकार की कार्यकारी परिषद के सदस्य १९४७-४८ में संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रथम भारतीय राजदूत तथा उड़ीसा के राज्यपाल भी रहे।
 
 
८>अब्दुल कलाम आजाद (१८८८-१९५८):-------------
इनका जन्म मक्का में हुआ था। आपके पिता महान रहस्यवादी तथा प्रसिध्द विव्दान थे और इनकी अरबी माता, मदीना के मुफ़्ती की पुत्री थी।इन्होंने परम्परावादी शिक्षा प्राप्त की थी तथा आप अरबी, फ़ारसी.उर्दू और इस्लामी शिक्षा के प्रकांड विव्दान थे।१६ वर्ष की अवस्था में उन्होंने आजाद का उपनाम धारण किया।१९०९ में उन्होंने पत्रकारिता का कार्य शुरू किया तथा अल-नदवाह,दी वकील.अल-हिलाल तथा अल-बलध जैसे बहुत से समाचार-पत्रो का प्रकाशन किया।३५ वर्ष की आयु में आजाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।यह पद ग्रहण करने वाले वे सबसे कम आयु के व्यक्ति थे।१९४० में वे दूसरी बार अध्यक्ष पद पर चुने गए तथा जून १९४६ तक इस पद पर बने रहे।स्वतन्त्रता के बाद तथा २२ फरवरी १९५८ को अपनी मृत्यु होने तक आजाद नेहरू मंत्री-मण्डल में शिक्षा मंत्री रहे।आजाद की आत्मकथात्मक पुस्तक इण्डिया विन्स फ्रीडम प्रसिध्द और विवादास्पद पुस्तक है।
 
९>चन्द्रशेखर आजाद (१९०६-१९३१):--------------
आप आधुनिक उत्तर प्रदेश के सुप्रशिद्ध क्रांतिकारी थे,इन्हें असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया तथा मुकदमे के दौरान इन्होंने पूछे जाने पर अपना नाम आजाद,अपने पिता का नाम स्वतन्त्रत तथा अपना घर जेलखाना बताया था।अतःअदालत का इस तरह अपमान करने के कारण इन्हें कोरे लगाए गए।तभी से यह आजाद के रूप में प्रसिध्द हुए।यह हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी एसोशिएशन के साथ सक्रियता से जुड़े हुए थे तथा काकोरी षड्यन्त्र,केस,लाहौर षड्यन्त्र केस आदि बहुत से क्रांतिकारी तथा अंग्रेजी शासन के लिए आंतकवादी कांडो से सम्बध्द थे।एल्फ्रेड पार्क,इलाहाबाद में पुलिस के साथ अकेले लड़ते हुए जब इनकी पिस्तौल की सभी गोली समाप्त हो गई तो अपनी पिस्तौल की अंतिम गोली से आत्मोत्सर्ग कर लिया।
 
 
१०>एस,कस्तूरी रँगा आयंगर (१८५९-१९२३):------------------
यह मद्रास के एक प्रमुख पत्रकार तथा राजनितिक नेता थे।इन्होंने १९०५ में दी हिन्दू समाचारपत्र में कार्य करना प्रारम्भ किया जिसका १९२३ तक जीवन पर्यन्त संपादन किया।इनके संपादकत्व में दी हिन्दू भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय तथा अत्यंत प्रभावशाली समाचार-पत्र बन गया था।इसने राष्ट्रीय आंदोलन का समर्थन किया।हलाकि कस्तूरी रँगा कट्टर ब्राह्मण थे,फिर भी इन्होंने उदारवादी समाज सुधारो जैसे अस्पर्शयता-निवारण, बाल-विवाह-निषेद और महिलाओ के उध्दार का सदैव समर्थन किया।
 
 
११>मुहम्मद सर इकबाल (१८७३-१९३८):---------------
उर्दू के प्रख्यात शायर तथा व्यवसाय से वकील इकबाल अपने जीवन के प्रारंभ में महान राष्ट्रवादी थे।इन्होंने ही प्रसिध्द राष्ट्रप्रेमी गीत सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा लिखा लेकिन बाद में यह मुस्लिम लीग की ओर आकर्षित हुए। इन्होंने १९३० में लीग के इलाहाबाद अधिवेशन की अध्यक्षता की जिसमे इन्होंने उत्तर-पश्चिम भारत में पृथक, मुस्लिम राज्य का विचार प्रस्तुत किया। इसी धारण को आगे चलकर गति गति मिली और उसकी परिणति १९४७ में पाकिस्तान राष्ट्र के सृजन में हुई।इसलिए इकबाल को पाकिस्तान के विचार का जनक माना जाता है।
 
 
१२>सैयद हसन इमाम (१८७१-१९३३):-------------------
यह राष्ट्रवादी कांग्रेसी नेता थे।१९१८ में आप कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।इन्होंने रॉलेट एक्ट के विरुध्द सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया।
 
 
१३>चार्ल्स फ़्रियर एण्डूज (दीनबन्धु एण्डूज)(१८७१-१९४०):-----------
आप अंग्रेज ईसाई धर्मप्रचारक तथा सेंट स्टीफेन कॉलेज दिल्ली से प्रध्यापक थे।भारतीयों से इनका गहरा लगाव था और हर तरह से ये भारतीय बनना चाहते थे।रवींद्रनाथ टैगोर ,गोपाल कृष्ण गोखले ,महात्मा गांधी तथा अन्य नेताओ से आपका घनिष्ठ सम्बन्ध था।आप दक्षिण अफ्रिका के फोनिक्स आश्रम में गांधीजी के साथ रहे तथा दक्षिण अफ्रिका ,पूर्वी अफ्रिका पश्चिमी व्दिपो ,फिजी आदि में रहने वाले भारतीयों की दशा सुधारने का प्रयास किया।मजदूर संघ की गतिविधियो में भी सक्रियता से भाग लिया तथा १९२५ और १९२७ में दो बार ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।आपने असपर्थ्यता निवारण के लिए चलाए गए आंदोलन में भी भाग लिया।इसी उद्देश्य से १९२५ में वैकोम सत्याग्रह में भाग लिया तथा १९३३ में हरिजनों की मांगो की रूपरेखा तैयार करने में डॉ. अम्बेडकर के साथ काम किया।गरीबो के प्रति आपकी निरन्तर चिंता को देखते हुए ही महात्मा गांधी ने इन्हें दीनबन्धु की उपाधि से सम्मानित किया।
 
 
१४>घोंड़ो केशव कर्वे(उर्फ़ अण्णासाहेब महर्षि कर्वे)(१८५८-१९६२):-------------
समाजसुधारक सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाशास्त्री कर्वे ने अपना पूरा जीवन विधावाओं के उत्थान और स्त्री शिक्षा के प्रचार के लिए समर्पित कर दिया।१८९३ में इन्होंने विधवा विवाहोनतेजनक मण्डली(विधवाओ के पुनर्विवाह को बढावा देने वाली समिति) बनाई जो विधवाओ के जरूतमंद बच्चो की सहायता करनी थी तथा उनकी शिक्षा की देखभाल करती थी।१८९५ में इस संस्था का नाम बदलकर विधवा विवाह प्रतिबन्ध निवारक मण्डली (विधवाओ के पुनर्विवाह की बढ़ाओ का निवारण करने वाली समिति) कर दिया गया।१८९८ में इन्होंने पूना में महिलाश्रम या विधवा गृह खोलो।इन्होंने १९०७ में महिला विधालय या महिलाओ के लिए स्कुल प्रारम्भ किए और महिला विद्यालय के लिए कार्यकर्ताओ को प्रशिक्षित करने की सवैच्छिक संस्था थी।१९१६ में इन्होंने भारतीय महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की।१९४४ में इन्होंने स्त्रियों की रचतंत्रता,समाजिक समता जाती विहीन समाज तथा राष्ट्रीय शिक्षा का समर्थन किया।१९५८ में इन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया।
 
 
१५>खरशन्दजी रुस्तमती कामा, (१८३१-१९०९):----------
यह एक पारसी व्यापारि थे।इनकी सार्वजनिक कार्यो तथा समाजिक सुधारो में गहरी रूचि थी।इन्होंने पारसियों में समाजिक धार्मिक सुधारो का समर्थन किया।१८५८ में कामा ने साप्ताहिक पारसी पत्र रस्त गोफ्तार का स्वामित्व ग्रहण कर लिया जो नए प्रगतिशील समाज सुधारो का अंग था।सुविखयात महिला क्रांतिकारी मैडम भीखाजी कामा उनकी पुत्र-वधु थी।
 
 
१६>मैडम भीखाजी कामा (१८६१-१९३६):-----------------
यह भारत की प्रथम सुविख्यात महिला क्रांतिकारी थी।इन्होंने बहुत से सुप्रसिध्द राष्ट्रवादी तथा क्रांतिकारी नेताओ जैसे दादाभाई नोरोजी,श्यामजी कृष्ण वर्मा ,वीर सावरकर ,सरदार सिंह राणा आदि के साथ मिल कर कार्य किया।यह रुसी क्रान्तिकारियो के संपर्क में भी आई तथा लेनिन के साथ इन्होंने पत्राचार भी किया, जिसमे इन्हें मास्को आने का आमन्त्रण दिया।
१९०९ से पेरिस इनका मुख्यालय हो गया तथा हरदयाल और शकलाबाला जैसे युवा क्रन्तिकारियो का मिलन-स्थल हो गया।स्वतन्त्राता के प्राप्ति इनकी भावना इतनी प्रबल थी की उग्र क्रांतिकारी तरीके इन्हें सहज प्रतीत होते थे।यह यूरोप में रहने वाले भारतीयों की अभिनव भारत समिति की प्रेरक शक्ति भी थी।जब इन्होंने विदेशी शासको को बाहर निकालने के अपरिहार्य तरीके के रूप में हिंसा को स्वीकार किया,तब इन्होंने बम बनाने के लिए युवा क्रन्तिकारियो के प्रशिक्षण की व्यवस्था की।इन्होंने यूरोप तथा अमेरिका की यात्राएं की ताकि लोगो को भारत की स्थिति के बारे में पता चल सके और उनका समर्थन समाप्त हो सके।१९०७ में इन्होंने स्टूगार्ट की समाजवादी कांग्रेस में भाग लिया जहां इन्होंने प्रथम भारतीय राष्ट्रीय झंडे को फहराया जिसकी डिजाइन इन्होंने स्वंय ही तैयार की थी।यही वास्तव में स्वतन्त्र भारत के झंडे का मूल रूप तथा अग्रदूत था।केवल रंग में अंतर था।इसमें केसरिया के स्थान पर लाल रंग था।इसी सम्मेलन में इन्होंने अपनी पूरी शक्ति के साथ स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने के अपने संकल्प की उद्घोषणा की।इन्होंने यह घोषणा की भारत एक गणराज्य होगा तथा हिंदी उसकी राष्ट्रभाषा तथा राष्ट्रलिपि देवनागरी होगी।
सरदार सिंह राणा के साथ यह क्रांतिकारी साहित्य तथा विस्फोटक पदार्थो को तस्करी के व्दारा भारत लाती थी।भारत की स्वतन्त्रता के लिए इनकी गतिविधिया प्रथम विश्व युध्द तक अबाध गति से चलती रही।बाद में फ्रांसीसी सरकार ने इन्हें गिरफ्तार करके विश्व युध्द के अंत तक तीन वर्ष जेल में कैद रखा।तिस वर्षो तक वे पेरिस में भारत की स्वतन्त्रता के लिए काम करती रही।१९३५ में ७४ वर्ष की अवस्था में वह बम्बई लौट आई तथा इसी वर्ष उनकी मृत्यु हो गई।इन्हें "भारतीय क्रान्तिकारियो की माता" कहकर सम्बोधित करना उनका सही सम्मान है।
 
 
१७>कैलाश नाथ काटजू (१८८७-१९६९):------------------
यह विधिशास्त्री और राष्ट्रीय नेता थे।आपने १९३३ के मेरठ षड्यन्त्र काण्ड में कैदियों की वकालत की।आप गोविन्द वल्लभ पन्त के अधीन संयुक्त प्रांत के कांग्रेस मन्त्रिमण्डल में न्याय,उद्योग तथा विकास मंत्री रहे। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य रहे।भारत छोरो आंदोलन के दौरान इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।आप भारतीय सविधान सभा के सदस्य भी रहे।१९५१ में भारत सरकार के केंद्रीय गृहमंत्री रहे और बाद में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
 
 
१८>रफी अहमद किदवई (१८९४-१९५४):---------------
यह एक राष्ट्रवादी नेता तथा वीर स्वतन्त्रा सेनानी थे।स्वतन्त्रता के उपरान्त यह खाद्य और कृषि मंत्री बने और बाद में इन्होंने संचार मंत्रालय का नेतृत्व सँभाला।
 
 
१९>नरसिंह चिंतामणि (१८७२-१९४७):-----------------
लोकमान्य तिलक के अत्यंत प्रमुख अनुयायी और सहयोगी ,मराठा के संपादक (१८९७-१९१९), केसरी के संपादक (१८९७-९९) और (१९०१-३१) अध्यक्ष बम्बई प्रांतीय सभा (१९२०)सदस्य केंद्रीय विधानसभा (१९२३-२६) कई वर्षो तक कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य रहे।
 
 
२०>प्रतापसिंह कैरो(१९०१-६५):----------------------
यह स्वतन्त्रता सेनानी ,प्रशासक और संगठनकर्ता थे।१९२९ तक संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्ययन करने के उपरान्त यह भारत आए और पंजाब में सशक्त किसान आंदोलन का संगठन किया।यह शीघ्र ही देश भगत परिवार सहायक कमेटी(राजनितिक कार्यकर्ताओ को सहायता तथा राहत पहुचाने के लिए गठित एक राष्ट्रवादी समिति) के कार्यकर्ता हो गए।इन्होंने न्यू एरा नामक पत्रिका प्रारम्भ की। अकाली दल की राजनीति में सक्रियता में भाग लिया,लेकिन एक कट्टर कांग्रेसी बने रहे।स्वाधीनता के बाद पंजाब मन्त्रिमण्डल में मंत्री और बाद में मुख्यमंत्री रहे।१९६४ में त्यागपत्र दिया,६ फरवरी १९६५ को गोली मारकर इनकी हत्या कर दी गई।
 
 
२१>अजमल हकीम खा (१८६५-१९२७):--------------
सच्चे राष्ट्रवादी जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्य का प्रचार किया,१९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ३६ वे अधिवेशन के अध्यक्ष रहे।
 
 
२२>अब्दुल गफ्फार खा (सीमांत गांधी)(१८९०-१९८८):----------
ब्रिटिश भारत के भूतपूर्व उत्तर-पश्चमी सीमा प्रांत के पेशावर जिले(पाकिस्तान) के एक गाव में इनका जन्म हुआ था।अपनी किशोरावस्था से ही यह राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने लगे थे तथा इन्होंने पठानों के मन में राष्ट्रवादी विचारो का प्रचार किया।इन्होंने रौलेट एक्ट के प्रबल विरोध किया तथा खिलाफत,असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में सक्रियता से भाग लिया।सर्वाधिक विशिष्ट बात यह है की १९३०-४७ के दौरान कांग्रेस व्दारा चलाए गए सभी राजनितिक आंदोलनों में इनकी प्रमुख भूमिका रही और इन्होंने लगभग चौदह वर्ष जेल में बिताये।१९२९ में इन्होंने खुदाई खिदमतगार (जिसका तातपर्य है ईश्वर की सेवक)की स्थापना की,जो समर्पित कार्यकर्ताओ का एक शांतिवादी समूह था।इसने इन्हें फख-ए-अफगान (अर्थात अफगानों का गौरव) की उपाधि दी थी।इस नव बन्धुत्व का उद्देश्य अपने अनुयायियों में भगवान के नाम पर अपने देश और जनता की सेवा करने के लिए भावनाओ एवं विचारो को जागृत करना था।यह मुस्लिम लीग की कट्टरपंथी विचारधारी से कभी सहमत नहीं हुए और धर्म निरपेक्षवाद के प्रति कटिबध्द रहे।यह भारत विभाजन के प्रबल विरोधी थे।विभाजन के उपरान्त इन्होंने पख्तूनिस्तान बनाने के लिए सक्रिय अभियान चलाया और इसीलिए आगामी पाकिस्तानो प्रशासको ने इन्हें कई बार जेल में बन्द रखा।सामान्यतया यह सीमांत गांधी, बादशाह खा,फख-ए-अफगान आदि नाम से जाने जाते है।इन्हें १९८७ में भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया।
 
 
२३>फैजली हुसैन खा (१८७७-१९३६):---------------
राजनेता और १९२० में पंजाब में यूनियनिस्ट(संघवादी) पार्टी के संस्थापक जिसने ब्रिटिश भारतीय सरकार के हितो के प्रति सहानुभूति राखी।अपने जीवन के अंत में इन्हें साप्रदायिक राजनीति में विश्वास न रहा और इन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया।
 
 
२४>लियाकत अली खा (१८९५-१९५१):-------------
मुस्लिम लीग के प्रमुख सदस्य इन्होंने १९४४ में कांग्रेस और लीग के बिच समझौते के लिए भूलाभाई देसाई से निजी बातचीत की ,जिससे वे बाद में मुकर गए।अंतरिम केंद्रीय सरकार में वित्तमंत्री रहे।पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे।अक्टूबर १९५१ में रावलपिंडी में इनकी हत्या कर दी गई।
 
 
२५>सर सैयद अहमद खा (१८१७-९९):--------------
यह अलीगढ़ आंदोलन के पर्वतक और मुसलमानो के पहले आधुनिक नेता थे।आपने मुसलमानो को (1) उदारवादी शिक्षा के महत्व और (2) ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति निष्ठा बनाये रखने के बारे में प्रबोधित किया।महान शिक्षाशास्त्री के रूप में इन्होंने अलीगढ में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की जो आगे चलकर अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना।
 
२६>कस्तूरबा गांधी (१८६९-१९४४):-----------------
कस्तूरबा गांधी का जन्म ११ अप्रैल सन १८६९ ई में आठियावार के पोरबन्दर नगर में हुआ था।कस्तूरबा गाँधी आयु में गांधी जी से ६ माह बरी थी।कस्तूरबा गांधी के पिता गोकुलदास मकनजी साधारण व्यापारि थे।गोकुलदास मकनजी और व्रजकुंवरबा कपाड़िया की कस्तूरबा तीसरी सन्तान थी।उस जमाने में कोई लड़कियों को पढाता तो था नहीं ,विवाह भी अल्पवय में ही कर दिया जाता था।इसलिए कस्तूरबा भी बचपन में निरक्षर थी और सात साल की अवस्था में ६ साल के मोहनदास के साथ उनकी सगाई कर दी गई।तेरह साल की आयु में उन दोनों का विवाह हो गया।
"बापू ने उन पर आरभ से ही अंकुश रखने का प्रयास किया और चाहा की कस्तूरबा बिना उनसे अनुमति लिए
कही न जाए,किन्तु वे उन्हें जितना दबाते उतना ही वे आजादी लेती और जहां चाहती चली जाती ।"
पति-पत्नी १८८८ ई तक लगभग साथ-साथ ही रहे किंतु बापू के इंग्लैड प्रवास के बाद से लगभग अगले बारह वर्ष दोनों प्रायः अलग-अलग से रहे।इंग्लैड प्रवास से लौटने के बाद शीघ्र ही बापू को अफ्रिका चला जाना परा।जब १८९६ में भारत आये तब बा को अपने साथ ले गए।तब से बा बापू के पद का अनुगमन करती रही।उन्होंने उनकी तरह ही अपने जीवन को सादा बना लिया था।वे बापू के अनेक उपवासों में बा प्रायः उनके साथ रही और उनकी सार सभाल करती रही।
"धर्म के संस्कार बा में गहरे पैठे हुए थे।वे किसी भी अवस्था में मांस और शराब लेकर माणूस देह भष्ट करने को तैयार न थी।अफ्रिका में कठिन बिमारी की अवस्था में भी उन्होंने मांस का शोरबा पीना अस्वीकार कर दिया और आजीवन इस बात पर दृढ़ रही।"
दक्षिण अफ्रिका में जेल जाने के सिवा कदाचित वहा के किसी सार्वजनिक काम में भाग नहीं लिया किन्तु भारत आने के बाद बापू ने जितने भी काम उठाए,उन सबमे एक अनुभवी सैनिक की भाति हाथ बटाया।कस्तूरबा गांधी की चार बच्चे थे जिनके नाम निम्न इस प्रकार है ------------हरिलाल गांधी, मणिलाल गांधी, देवदास गांधी, रामदास गांधी ।
९ अगस्त १९४२ को बापू आदि के गिरफ्तार हो जाने पर बा ने शिवाजी पार्क(बम्बई)में जहां स्वयं बापू भाषण देने वाले थे ,सभा में भाषण करने का निश्चय किया किन्तु पार्क के द्वार पर पहुचने पर गिरफ्तार कर ली गई।दो दिन बाद वे पूना के आगा खा महल में भेज दी गई।बापू गिरफ्तार कर पहले ही वहा भेजे जा चुके थे।उस समय अस्वस्थ थी।गिरफ्तारी की रात को उनका जो स्वास्थ बिगरा वह फिर सन्तोषजनक रूप से सुधार नहीं और अंततोगत्वा उन्होंने २२ फरवरी १९४४ को अपना देह त्याग दिया।उनकी मित्यु के उपरान्त राष्ट्र ने महिला कल्याण के निमित्त एक करोड़ रुपया एकत्र कर इंदौर में कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की स्थापना की।
 
 
२८>रानी गैडिनलियू (१९१५-१९८१):----------------
यह नाम महिला राष्ट्रवादी नेता और नागा नेता जदोनाग (१९०५-३१) व्दारा प्रारम्भ किए गए राजनितिक आंदोलन की उत्तराधिकारी थी।इन्होंने मणिपुर से अंग्रेजो को खदेड़ने का प्रयास किया।इन्होंने अपने राजनितिक प्रचार में महात्मा गांधी के नाम का इस्तेमाल किया।जदोनाग को फांसी दिए जाने के पश्चात इन्होंने सत्रह वर्ष की अल्पायु में ब्रिटिश सरकार के विरुध्द नागाओ के लोकप्रचलित विद्रोह का संगठन किया।इनका उग्रवादी राजनितिक विद्रोह ऐसी शक्ति बन गया था की इनके अनुयायियों को परास्त करने तथा इन्हें चौदह वर्ष जेल में व्यतीत करने परे।१९३७ में जब जवाहर लाल नेहरू असम गए तो वह इनकी गतिविधियो से इतने अधिक प्रभावित हुए की उन्होंने इन्हें नागाओ की रानी कहकर पुकारा।तभी से गैडिनलियू के साथ सामान्यतया रानी की उपाधि जुड़ी हुई है।अंततः उन्हें भारत की स्वतन्त्रता के बाद जेल से रिहा कर दिया गया।
 
२९>गोपाल कृष्ण गोखले (१८६६-१९१५):---------------------
यह शिक्षाविद मानवतावादी समाजसुधारक तथा महान देश-प्रेमी थे।यह कांग्रेस की उदारवादी राजनीति से संबध्द थे।१९०५ में इन्होंने "भारत सेवक समाज" की स्थापना की और स्वतन्त्रता के लिए भारतीय संघर्ष के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए इंग्लैंड तथा दक्षिण अफ्रिका की यात्रा की।१९१५ में इनकी मृत्यु पर तिलक ने उन्हें "भारत का हीरा" कहा था।
 
 
३०>अरविंद घोष (१८७२-१९५०):-------------------------------
यह प्रमुख बंगाली क्रांतिकारी थे जो बाद में योगी बन गए।लगभग तेरह वर्ष तक यह अपनी शिक्षा के लिए इंग्लैंड में रहे।यह लगभग दस वर्षो (१९०१-१९१०)तक,विशेषकर बंगाल विभाजन के दौरान ,राजनितिक क्षेत्र में सक्रिय बने रहे तथा स्वदेशी और बहिष्कार के कार्यक्रमो का पटिपादन करने वालो में शामिल रहे।इन्होंने यह विचार व्यक्त किया की राजनितिक स्वतन्त्रता "हमारे राष्ट्र का जीवन और प्राण है।" और औपनिवेशिक स्व-शासन को इन्होंने "राजनितिक राक्षसपन" की संज्ञा दी।१९०८-१९०९ में सरकार ने इन्हें मानिकतल्ला बम षड्यन्त्र काण्ड में फसाकर एक वर्ष की कैद की सजा दी ,लेकिन अंततः इन्हें छोर दिया गया।१९१० में यह पांडिचेरी चले गए ,जहां इन्होंने अपना जीवन ध्यान और आध्यात्मिक कार्यो में व्यतीत किया।
 
 
३१>बारीन्द्र कुमार घोष (१८८०-१९५९):-----------------
यह क्रांतिकारी आंतकवादी के प्रथम चरण के प्रमुख नेता थे और अरविंद घोष के क्रांतिकारी विचारो से अत्यधिक प्रभावित थे।स्वदेशी आंदोलन के परिणामस्वरूप बारीन्द्र ने क्रांतिकारी विचारो का प्रचार करने के लिए १९०६ में बंगाली साप्ताहिक युगांतर का प्रकाशन प्रारम्भ किया।१९०७ में क्रांतिकारी की गतिविधियो का सयोजन करने के लिए इन्होंने मानिकतल्ला पार्टी का गठन किया।१९०८ में इन्हें ३४ अन्य क्रान्तिकारियो के साथ गिरफ्तार किया गया ,जिसे बाद में आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया गया।अंडमान जेल में दस वर्ष व्यतीत करने के उपरान्त इन्होंने अपना समय पत्रकारिता में लगाया तथा पाचीनतम बंगाली दैनिक दी स्टेटर्समैन और बसुमती के संपादक के रूप में संबंध्द रहे।
 
 
३२>रास बिहारी घोष (१८४५-१९२१):-----------------
यह प्रख्यात वकील ,शिक्षाविद ,मानवतावादी और बंगाल से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख उदारवादी नेता थे। इन्होंने उग्रपंथियों को घातक जनोत्तेजक तथा अनुत्तरदायी आंदोलनकारी कहा।इन्हें अंग्रजो की न्याय भावना में पूर्ण विश्वाश था तथा यह उदारवादी थे।इन्हें १९०७ में सूरत अधिवेशन में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था।
 
३३>लाल मोहन घोष (१८४९-१९०९):------------------
यह महान बक्ता तथा देशभक्त थे। इन्होंने १८७९ में ब्रिटिश भारतीय संघ ,कलकत्ता का इंग्लैंड में प्रतिनिधि किया ताकि सिविल सेवा में भारतीयों को प्रवेश दिलाया जा सके।यह प्रमुख उदारवादी नेता थे।इन्होंने १९०३ में मद्रास में आयोजित भारतीयों राष्ट्रीय कांग्रेस के १९वे वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की।
 
३४>जोगेश चन्द्र चटर्जी (१८९५-१९६९):----------------
यह एक क्रांतिकारी थे। बंगाल में इनका संबन्ध अनुशीलन समिति की गतिविधियो से था लेकिन आगे चलकर इन्होंने कानपुर को अपने संगठन का केंद्र बनाया।यह हिंदुस्तान समाजवादी गणतन्त्रीय संघ के संस्थापको में थे।इन्हें काकोरी षड्यंत्र काण्ड में गिरफ्तार किया गया और आजीवन कारावास की सजा दी गई।अपनी रिहाई के उपरान्त इन्होंने १९४० में क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी के नाम से अनुशीलनवादियो का पृथक संघठन स्थापित किया।लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन के अवसर पर १९४२ में इन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया।जोगेश चन्द्र चटर्जी ने विभिन्न जेलो में लगभग २४ वर्ष व्यतीत किए।इनमे से लगभग दाई वर्ष इन्होंने विभिन्न अवसरों पर भूख हरताल में बिताए जिसमे सबसे लम्बी भूख हरताल १४२ दिनों की थी।
 
 
३५>बंकिम चन्द्र चटर्जी (१८३८-१८९४):-------------
यह १९वी शताब्दी के बंगाल के प्रचण्ड विव्दान ,महान कवि और आधुनिक बंगाली साहित्य के सुविख्यात उपन्यासकार तथा राष्ट्रवादी थे।इन्होंने देशभक्ति के विचार को धर्म के आवश्यक अंग के रूप में प्रस्तुत किया।यह महान समाजिक दर्शनशास्त्री भी थे।इन्होंने १८६५ में अपना पहला उपन्यास दुर्गेशनन्दिनी लिखा।इन्होंने अपने प्रसिध्द देशभक्ति गीत बन्देमातरम की रचना १८७४ में किसी समय की थी जिसे बाद में अपने सुचर्चित उपन्यास आनन्द मठ में शामिल किया।
 
३६>बन्धु दामोदर चापेकर (१८७०-१८९७), बालकृष्ण (१८७३-१८९९) और वासुदेव (१८७९-१८९९):-------
महारष्ट्र के इन तीनो चापेकर बन्धुओ ने बाल गंगाधर तिलक के प्रभाव में आकर शारीरिक तथा सैनिक प्रशिक्षण के लिए एक संघ बनाया।जिसे इन्होंने हिन्दू धर्म के उध्दार हेतु समिति की संज्ञा दी।बालकृष्ण तथा दामोदर चापेकर ने जून १८९७ में रानी विक्टोरिया के हीरक जयंती समारोहों के अवसर पर दो ब्रिटिश अधिकारियों रैण्ड और ले.एमहर्स्ट की पूना में हत्या कर दी।इन्हें गिरफ्तार कर इन पर मुकदमा चलाया गया और दोनों को फांसी दे दी गई।तीसरे भाई वासुदेव ने दामोदर और बालकृष्ण को गिरफ्तार करवाने के लिए उत्तरदायी गणेश शंकर द्रविड़ की हत्या की।कुछ समय तक मुकदमा चलने के बाद इन्हें भी म्रत्युदंड दिया गया और ८ मई १८९९ को फांसी दे दी गई।तीनो बन्धुओ को यह मालुम था की वे पवित्र कार्य के लिए प्राण त्याग रहे है,अतः फांसी पर चढ़ते समय उनमे किसी भय या पश्चाताप के लक्षण नहीं दिखाई दिए।
 
३७>पि.आनंद चार्लु (१८४३-१९०८):------------------
आप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ७२ बहादुर संस्थापको में एक थे।दक्षिण में सार्वजनिक जीवन के उन्नायक थे।आपने कांग्रेस-पूर्व युग में मद्रास महाजन सभा को बृहद सार्वजनिक संस्था का रूप देने में प्रमुख भूमिका निभाई।विधान परिषद में इन्होंने मद्रास का प्रतिनिधित्व किया।१८९१ में आप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने तथा बाद में उसके सचिव भी रहे।
 
३८>सी.वाई चिंतामणि (१८८०-१९४१):----------------------
यह स्वतन्त्रता पूर्व भारत के प्रतिष्ठित संपादको तथा उदारवादी दल के संस्थापको में थे।इनका नाम इलाहाबाद से प्रकाशित दी लीडर के साथ जुड़ा हुआ है।इस समाचार-पत्र से जुड़ने से पहले यह इलाहाबाद के ही एक साप्ताहिक पत्र दी इंडियन पीपुल और पटना के हिंदुस्तान रिव्यु का संपादन करते थे।चिंतामणि ने उनतीस वर्षो तक भावनात्मक रूप से दी लीडर का संपादन किया।उनके लिए उनका पत्र उदारवाद का एक साधन था।वह आठ वर्षो तक भारतीय राष्ट्रीय उदरावादी दल परिसंघ के महासचिव रहे तथा १९२० और १९३१ में इसके वार्षिक अधिवेशनो की अध्यक्षता की।इन्होंने गोलमेज सम्मेलन में उदारवादी दल का प्रतिनिधित्व भी किया था।
 
३९>आशुतोष चौधरी (१८६०-१९२४):-------------------------
यह व्यवसाय से वकील तथा देश के औद्योगिक विकास के पक्षधर थे।इन्होंने भारत के लिए बड़े वयापक स्तर पर प्रोधोगिक उन्मुख शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता पर बल दिया ,जो मध्यकाल से आधुनिक प्रजातांत्रिक तथा वाणिज्यिक युग में तेजी से प्रवर्तित हो रहा था।आशुतोष राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के संस्थापक तथा मार्गनिर्देशक मनीषी थे।इसकी स्थापना स्वदेशी आंदोलन के दौरान १९०५ में सहकारी संस्थाओ तथा विश्वविद्यालयो का बहिष्कार करने वाले विद्यार्थियो के लिए की गई थी।यह कुछ समय तक आदि ब्रह्रा समाज के अध्यक्ष भी रहे।
 
 
४०>जदोनाग (१९०५-१९३१):--------------------------
यह मणिपुर के नागा जनजाति के अग्रणी स्वतन्त्रता सेनानी थे ,जो नागा जनजाति की समाजिक तथा धार्मिक रूढ़िवादिता और आपत्तिजनक ब्रिटिश कानूनों ,जिनके प्रति पर्वतीय जनजातियों ने भयंकर आक्रोश व्यक्त किया ,के भी विरोधी थे।जदोनाग ने रानी गैदिन्लियू सहित अपने विश्वास्पात्र अनुयायियों की सहायता से सामाजिक तथा धार्मिक सुधार कार्य प्रारम्भ किए।यह परम्परागत धर्म एवं संस्कृति को बनाए रखते हुए नागाओ में एकता की भावना उतपन्न करना तथा सामाजिक एकता कायम करना चाहते थे।अपने लोगो के सामाजिक उत्थान में इनकी अभिरुचि इतनी सहज थी की यह उस समय भारत में उठ रहे स्वतन्त्रता आंदोलन में शामिल हो गए।महात्मा गांधी और कांग्रेस से उन्हें प्रेरणा मिली।इनका पहला कदम राज्य के दमनात्मक कानूनों का विरोध करना और यह दावा करना था की नागा और श्वेत व्यक्ति समान है।इन्होंने लोगो को सरकारी कर अदा न करने तथा राजकीय कानूनों का उल्लंघन करने के लिए प्रोत्साहित किया।इन्होंने स्वतन्त्र नागा राज स्थापित करने की घोषणा की।इससे ब्रिटिश सरकार अत्याधिक सावधान हो गई।और जदोनाग तथा उनके अनुयायियों को गिरफ्तार कर लिया गया।जदोनाग को म्रत्युदंड दिया गया तथा २९ अगस्त १९३१ को उन्हें फांसी दी गई।इनकी म्रत्यु के बाद इनकी शिष्या और अनुयायी रानी गैडिनलियू ने ब्रिटिश शासन के विरुध्द अपनी लराई जारी रखी।
 
 
४१>मुकुन्द रामाराव जयकर (१८७३-१९५९):----------------------
यह व्यवसाय से वकील थे तथा बम्बई विधान परिषद में १९२३-१९२५ में स्वराज्य पार्टी के नेता रहे।१९२५ में आपने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया।१९२६-१९३० में केंद्रीय विधानसभा के सदस्य रहे तथा १९२७ में विधानसभा में राष्ट्रवादी पाटी के उपनेता रहे।आपने भारतीय गोलमेज सम्मेलन के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।१९३७ में आप संघीय न्यायालय के न्यायधीश रहे।१९३९-१९४२ में प्रिवी परिषद के सदस्य रहे।१९४७ में त्यागपत्र देने तक भारतीय सविधान सभा के सदस्य भी रहे।
 
 
४२>मोहम्मद अली जिन्ना (१८७५-१९४८):------------------------
आप प्रमुख वकील ,मुस्लिम लीग के नेता तथा पाकिस्तान के संस्थापक थे।इन्होंने अपना राजनितिक जीवन कांग्रेस से प्रारम्भ किया,लेकिन असहयोग का करा विरोध करते हुए कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और उसके बाद यह पूर्णतः लीग की सांप्रदायिक राजनीति से संबंध्द हो गए।१९२९ में इन्होंने नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया और अपने चौदह सूत्रों को प्रस्तुत किया,जिसमे मुसलमानो के पृथक साम्प्रदायिक राजनितिक हितो के विस्तार की मांग की गई।इन्होंने अपने कुख्यात दी राष्ट्र सिध्दांत का प्रतिपादन किया और २० मार्च १९४० को लीग के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान प्रस्ताव को पारित कराने के लिए प्रमुख रूप से जिन्ना ही उत्तरदायी थे।इन्होंने भारत छोरो आंदोलन की निंदा की तथा भारतीय मुसलमानो को इस आंदोलन से दूर रहने के लिए कहा।१९४० से १९४७ तक इन्होंने पाकिस्तान बनाने के लिए विभेदक नीति का अनुसरण किया।भारत के विभाजन के उपरान्त यह पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने।इन्हें कायदे-आजम के नाम से भी जाना जाता है।
 
 
४३>नारायण मल्हार जोशी (१८७५-१९५५):------------------
आप भारत में ट्रेड यनियन आंदोलन के जन्मदाता थे।इन्होंने १९२१ में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की और १९२९ तक उसके सचिव बने रहे।ट्रेड यूनियन कांग्रेस में साम्यवादियो का प्रमुत्व होने पर इन्होंने यह कांग्रेस छोर दी तथा ट्रेड यूनियन परिसंघ बनाया।१९२१ के बाद २६ वर्षो तक यह केंद्रीय विधान सभा,दिल्ली के निर्वाचित सदस्य रहे और इन्हें "सभा का जनक" कहा गया।श्रम कल्याण संबन्धी कई कानूनों के निर्माण में इनका प्रमुख योगदान रहा।
 
४४>रवींद्रनाथ टैगोर (१८६१-१९४१):-----------------------------
विश्व के महानतम कवि,लघु ,कहानियो,उपन्यास ,नाटको आदि के लेखक जिन्हें १९१३ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।बंगाल के शांति निकेतन(बोलपुर) में इन्होंने अंतराष्ट्रीय शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय की स्थापना की।
 
४५>ठक्कर बापा (उर्फ़ अमृत लाल) (१८६९-१९५१):-----------------------
प्रमुख गांधीवादी समाजिक कार्यकर्ता तथा स्वतन्त्रता सेनानी जिन्होंने जनजाति कल्याण के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य किया।यह हरिजन सेवक संघ के महांसचिव थे।१९३३-१९३४ के दौरान इन्होंने गांधीजी के साथ हरिजनों की दशा देखने-जानने के लिए भारत भर्मण किया।यह सर्वेन्टर्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी के निष्ठावान सदस्य थे।इन्होंने जनजातियों के कल्याण के अनेक कार्य किए तथा मध्य प्रदेश के मण्डला जिले में गोंड सेवा संघ का गठन किया जिसे अब वनवासी सेवा मण्डल कहा जाता है।
 
४९>हेनरी लुई विवियन डेरोजियो (१८०९-१८३१):------------------------
प्रतिभावान यूरेशियाई (उनके पिता पुर्तगाली थे और माँ भारतीय थी) और बंगाल में पुनर्जागरण के अग्रदूत थे।यह कवि तथा हिन्दू कालेज कलकत्ता में साहित्य और इतिहास के प्रवक्ता थे।डेरोजियो और उनके साथी,जो सामान्यतया डरोजियन अथवा यंग बंगाल के रूप में प्रसिध्द थे।आप आतिवादी विचारो तथा कार्यक्रमो के पराम्भिक अग्रदूत थे।इनके प्रगतिशील विचारो से समाज के अभिजात वर्गो के लिए गंभीर खतरा उतपन्न हो गया था।इनके आलोचनात्मक द्रष्टिकोण का प्रभाव उनके युवा शिष्यो के मन को उदार बनाने तथा उनमे राष्ट्रवादी भावनाओ का प्रचार करने पर पड़ा।
 
 
५०>रमेश चन्द्र दत्त (१८४८-१९०९):----------------------------
यह महान भारत-विधाविद ,अर्थशास्त्री तथा राष्ट्रवादी थे।इन्होंने १८९९ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता की।इनकी रचनाओ में ब्रिटिश भारत का आर्थिक इतिहास,विक्टोरिया युग में भारत और प्राचीन भारतीय सभ्यता का इतिहास शामिल है।आर्थिक क्षेत्र में इनकी रचनाओ का संभवतया अति विशिष्ट योगदान रहा, जिसने राष्ट्रवादी आंदोलन की भावी दिशा को अत्यधिक प्रभावित किया।धन के बहिर्गमन की विचारधारा के एक महान प्रवर्तक थे।
 
 
५१>दत्ता कल्पना (१९१३-१९७८):------------------------
बंगाल की प्रसिध्द महिला क्रांतिकारी तथा चटगाँव शस्त्रागार आक्रमण के नेता सूर्य सेन के नेतृत्व वाले क्रांतिकारी गुप्त संगठन की सक्रिय सदस्य थी।इन्होंने विभिन्न क्रांतिकारी क्रियाकलापो में भाग लिया तथा चटगाँव शस्त्रागार आक्रमण के अपराध में इन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई।१९३९ में अपनी रिहाई के उपरान्त यह भारत के साम्यवादी दल में शामिल हो गई तथा साम्यवादी नेता पि.सी.जोशी से विवाह किया।
 
५२>चित्तरंजन दास (देशबन्धु)(१८७०-१९२५):---------------------
यह महान राष्ट्रवादी तथा प्रसिध्द विधिशास्त्री थे।यह अलीपुर षड्यन्त्र काण्ड(१९०८) में अरविन्द घोष के बचाव के लिए बचाव पक्ष के वकील थे तथा डाका षड्यन्त्र काण्ड में यह प्रतिवादी पक्ष के वकील रहे।इन्होंने असहयोग आंदोलन के अवसर पर अपने अधिक लाभप्रद कानूनी व्यवसाय को छोर दिया तथा १९२१ में अहमदाबाद में हुए कांग्रेस अधिवेशन में इन्हें अध्यक्ष चुना गया।यह स्वराज पार्टी के संस्थापक थे।इन्होंने १९२३ में लाहौर में तथा १९२४ में अहमदाबाद में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की अध्यक्षता की। समाजिक क्षेत्र में इनकी वाक्पटुला लोकप्रिय हो चुकी थी।
 
 
५३>जतिन्द्र नाथ दास (१९०४-१९२९):-------------------------------
यह महान क्रांतिकारी थे। इन्हें लाहौर षड्यन्त्र में सह-अपराधी होने के कारण १४ जून १९२९ को गिरफ्तार किया गया।६३ दिनों तक उपवास रखने के उपरान्त १३ सितम्बर १९२९ की लाहौर जेल में इनकी ६४ वी दिन मित्यु हो गई।
 
५४>आचार्य नरेंद्र देव् (१८८९-१९५६):--------------------------------
यह प्रसिद्ध शिक्षाविद देशभक्त और समाजवादी थे।इन्होंने अनेक पुस्तक भी लिखी यह कांग्रेस समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे।कई वर्षो तक आप लखनऊ तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयो के उपकुलपति भी रहे।आप भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अति प्रमुख सेनानियो में गणनीय है।
 
५५>गोपाल हरि देशमुख (लोकहितवादी)(१८२३-९२):--------------------
ये पश्चिमी भारत के महान समाज सुधारक थे।इन्होंने मराठी की मासिक पत्रिका लोकहितवादी का संपादन किया,जिसने विधवा पुनर्विवाह तथा महिलाओ की समाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का समर्थन किया तथा हर तरह से बाल विवाह ,जाती प्रथा और दासता का निंदा की।इन्होंने अहमदाबाद में पुनर्विवाह मण्डल (विधवा पुनर्विवाह संस्थान) की शुरुआत की ,लोकहितवादी ने क्रमशः बम्बई और पूना में इंदु प्रकाश तथा ज्ञान प्रकाश नामक मराठी समाचार-पत्रो के प्रकाशन में सहयोग दिया।
 
 
५६>भूलाभाई देसाई (१८७७-१९४६):----------------------
यह व्यवसाय से वकील तथा कांग्रेसी नेता थे।इनका जन्म सूरत में हुआ था।वह बम्बई के महाधिक्ता थे।सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाल लेने के कारण एक वर्ष तक जेल में रहे।इन्होंने केंद्रीय विधानसभा में नौ वर्ष तक कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया।१९४४ में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बिच समझौता कराने के प्रयत्न में इन्होंने नवाबजादा लियाकत अली खा के साथ निजी तौर पर बातचीत करके अंतरिम-सरकार पर देसाई-लियाकत समझौता संपन्न कराया।मई १९४६ में अपनी म्रत्यु के पहले इनका अंतिम महान कार्य भारतीय राष्ट्रीय सेना के कैदियों का बचाव करना था।
 
५७>महादेव देसाई (१८९२-१९४२):---------------------------
यह २५ वर्षो तक महात्मा गांदी के सचिव रहे तथा उन्होंने चम्पारण सत्याग्रह(१९१७) से लेकर भारत छोरो आंदोलन(१९४२)तक सभी आंदोलनों में भाग लिया।भारत छोरो आंदोलन के अवसर पर गांधीजी के साथ गिरफ्तार करके इन्हें आगा खा पैलेस में कैद रखा गया जहां १५ अगस्त १९४२ को इनकी म्रत्यु हो गई।महादेव देसाई ने इलाहाबाद से प्रकाशित दी इन्डिपेन्डेन्ट और अहमदाबाद के नवजीवन का भी संपादन किया।
 
 
५८>मदन लाल घीगरा (१८८७-१९०९):---------------------
यह पंजाब के महान क्रांतिकारी थे।आप इंजीनियरी में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए १९०६ में इंग्लैंड गए थे ,जहां वे श्यामजी कृष्ना वर्मा तथा वी.दी.सावरकर जैसे क्रांतिकारी भारतीय नेताओ के घनिष्ठ संपर्क में आये।यह लन्दन में भारतीय होम रूल सोसायटी ,अभिनव भारत सोसायटी तथा इण्डिया हाउस से भी संबध्द रहे।भारत में अंग्रेजो व्दारा किये गए अत्याचारो का बदला लेने के लिए इन्होंने १ जुलाई १९०९ को लन्दन में भारतीय राष्ट्रीय संघ की बैठक में भारत के राज्य सचिव के सलाहकार कर्जन वायली तथा कोवास लोलक्का को मार डाला।अपने मुकदमे के दौरान इन्होंने लार्ड वायली की हत्या की जिम्मेवारी अपने ऊपर ले ली।जब उन्हें मुत्युदण्ड की सजा दी गई, तब उन्होंने न्यायाधीश से कहा "मुक्षे अपना तुच्छ जीवन समर्पित करने का गर्व है.......मुझ जैसे पुत्र के पास अपनी माता को आपना रक्त अर्पित करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है और इसीलिए उसकी बलिदेवी पर मैने उसकी आत्माहुति दे दी है।" इन्होंने अपने जीवन के महान आदर्श को संक्षेप में बताते हुए कहा," आज भारत को केवल एक सबक सीखना है की कैसे प्राणोत्सर्ग किया जाए।तथा इसे सिखाने का एकमात्र तरीका अपना प्राणोत्सर्ग करना है।अतः मै मातृभूमि की बलिवेदी का प्राणोत्सर्ग का रहा हु।
 
 
५९> सरोजिनी नायडू (१८७९-१९४९):----------------
आप प्रख्यात कवयित्री और राष्ट्रवादी नेता थी।१९२५ मे कानपुर मे हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ४० वे वार्षिक अधिवेशन की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष बनी।महात्मा गांधी की विश्वास्पात्र और निष्ठावान सहयोगी रही।स्वतन्त्रता संग्राम मे भाग लेने पर इन्हें कई बार जेल की सजा हुई।१९४७-४८ मे यह उत्तर प्रदेश की राज्यपाल भी रही।
 
 
६०>ई.वी.रामास्वामी नाथकर (१८७९-१९७३):----------------
आप निम्न जातियो और द्रविड़ आंदोलन के प्रतिष्ठित नेता थे।इन्होंने अपना राजनितिक जीवन कांग्रेस के सदस्य के रूप मे प्रारम्भ किया और असहयोग आंदोलन मे इनकी गिरफ्तारी भी हुई।१९२३ मे इन्होंने निम्न जातियो के हितो की रक्षा के लिए आत्म सम्मान आंदोलन चलाया।१९४४ मे यह जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष बने,जो आगे चलकर द्रविड़ ,मुनेत्र कड़गम (द्रविड़ परिसंघ) मे परिवर्तित हो गई।यह पार्टी प्रभुता सम्पन्न तथा जातिविहीन द्रवीरनाडु की स्थापना की पक्षधर थी।यह उग्र विचारक थे तथा इन्होंने हिन्दुत्व की यह कहकर भत्र्सना की वह ब्राह्रणों के हाथ का खिलौना मात्र है ,मनु के नियम अमानवीय है।इन्होंने हिन्दू देवी-देवताओ तथा जाती प्रथा पर करा प्रहार किया।इन्होंने द्रविड़ो पर हिंदी थोपने का भी करा विरोध किया।
 
 
६१>जवाहर लाल नेहरू (१८८९-१९६४):----------------
यह राजनीतिज्ञ ,राजनेता ,धारा-परवाह वक्ता,धर्मनिरपेक्षता के कट्टर समर्थक तथा शान्ति के अग्रदूत थे।इन्होंने भारत के राजनितिक आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया।यह १९४७ से १९६४ तक भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे।आप पंचशील नीति के प्रणेता तथा क्षेत्रीय समझौतों के प्रबल विरोधी और गुट निरपेक्षता में विश्वास रखने वाले थे।इनकी रचनाओ में भारत की खोज ,विश्व इतिहास की झलक और पराने पत्रो का संकलन शामिल है।
 
 
६२>मोतीलाल नेहरू (१८६१-१९३१):-------------------
आप प्रख्यात वकील तथा जवाहरलाल नेहरू के पिता थे।यह महान देश भक्त और स्वतन्त्रता सेनानी थे और स्वराज पार्टी के संस्थापक नेता थे। यह सर्वदलीय नेहरू कमेटी के अध्यक्ष थे,जिसने 'नेहरू कमेटी रिपोर्ट' के नाम से प्रसिध्द सवैधानिक प्रारूप तैयार किया।
 
 
६३>दादाभाई नोरोजी (१८२५-१९१७):-------------------
यह पारसी पुरोहित परिवार में पैदा हुए थे और भारत के सम्माननीय अनुभवी व्यक्ति के रूप में संमृध्द हुए। इंग्लैंड में अपने प्रवास के दौरान इन्हें अपने देश के हितार्थ संघर्ष करने वाला भारत का गैर-सरकारी राजदूत माना गया।इन्होंने १९६५ में डब्ल्यू.सी.बोनर्जी के साथ मिलकर लन्दन इंडिया सोसायटी का गठन किया,जिसका कार्य भारत के दुःख-दर्दो का प्रचार करना था।१८९२ में लिबरल पार्टी की टिकट पट ब्रिटिश हाउस आफ कॉमन्स के लिये चुने जाने वाले यह पहले भारतीय थे।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में इनकी प्रमुख भूमिका रही तथा यह तीन बार (१८८६,१८९३ तथा १९०६ में) इसके अध्यक्ष चुने गए थे। इन्होंने अपने लम्बे निबन्ध पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया में स्पष्ट रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की आर्थिक दुरावस्था पर प्रकाश डाला तथा धन के बहिगर्मन के सिध्दांत का सर्वप्रथम प्रतिपादन किया।
 
 
६४>अच्युत एस. पटवर्धन (१९०५-१९७१):-------------------
१९३४ में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे।इन्होंने १९४२ में महाराष्ट्र में भारत छोरो आंदोलन का नेतृत्व किया।स्वतन्त्रता के बाद इन्होंने राजनीति छोर दी।
 
 
६५>भाई परमानंद (१८७४-१९४७):--------------------
यह पंजाब के सुप्रशिद्ध आर्य समाजी नेता तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में गदर पार्टी के प्रमुख कर्ता-धरता में से थे।यह लाला हरदयाल के निकट सहयोगी थे तथा इन्होंने गदर पार्टी की गतिविधियो को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।१९१३ में भारत लौटने पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और प्रथम लाहौर षड्यन्त्र काण्ड में इन पर मुकदमा चलाया गया।इन्हें म्रत्युदंड दिया गया था, किन्तु वाइसराय लार्ड हाडिंग ने इनकी सजा को आजीवन करावास में बदल दिया।१९२० में अपनी रिहाई के बाद यह नेशनल कालेज लाहौर के कुलपति बन गए।कांग्रेस की मुसलमान समर्थन नीति के कारण तथा हिन्दू-राष्ट्रवाद के पक्षध्र होने के नाते १९३० में यह कांग्रेस के कटु आलोचक बन गए और इस कारण यह हिन्दू महासभा की ओर आकर्षित हुए।१९३३ में यह हिन्दू महासभा के अजमेर अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए।
 
 
६६>सरदार वल्लभ भाई पटेल (१८७५-१९५०):-------------------
यह गुजराती बैरिस्टर थे।१९१८ में खेरा सत्याग्रह में भाग लेकर इन्होंने राजनितिक में प्रवेश किया।यह सत्याग्रह ,फसल खराब होने पर किसानों से लगान वसूल नहीं किए जाने की मांग को लेकर किया था।१९२२ में इन्होंने गुजरात के बारदोली तालुका में एक अन्य कृषक आंदोलन को सचालित किया जो सामान्यतया बारदोली सत्याग्रह के नाम से प्रसिध्य हुआ।इस आंदोलन के संचालन में मिली प्रभावशाली सफलता की वजह से विभूषित किया।महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारम्भ किए गए सभी आंदोलनों में इन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सरदार पटेल स्वतन्त्र भारत के उप प्रधानमंत्री बने।उसके अलावा उनके पास ग्रह मंत्रालय भारतीय रियासत तथा सुचना ओर प्रसारण मंत्रालय का भर भी था।इनके राजनितिक जीवन की सबसे महान उपाधि भारत के लगभग ५६२ रजवाड़ो तथा रियासतों का भारतीय संघ में विलय था।
 
 
६७>विट्ठल भाई पटेल (१८७३-१९३३):------------------
यह भी राष्ट्रवादी नेता थे।कानून की पढ़ाई के बाद इन्होंने बम्बई में ही वकालत प्रारंभ की।यह १९१७ में बम्बई विधानसभा के लिए चुने गए ओर भारत सरकार अधिनियम के संबन्ध में इन्होंने लन्दन सम्मेलन (१९१९) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया।१९२० में यह असहयोग आंदोलन में शामिल हुए।यह बम्बई के मेयर भी बने लेकिन शीघ्र ही इन्हें इस पद से त्यागपत्र देने के लिए बाध्य होना पड़ा।यह कई बार जेल गए और १९३३ में स्विट्जरलैंड के प्रवास के दौरान इनकी म्रत्यु हो गई।
 
 
६८>सोहन लाल पाठक (१८८३-१९१६):---------------------
प्रमुख क्रांतिकारी और लाला लाजपत राय के अधीन बन्देमातरम नामक पत्रिका के संपादक श्री पाठक कैलिफोर्निया में गदर पार्टी के शामिल होने के लिए १९१४ में अमेरिका गए।विद्रोह के संचालन का प्रयास करते हुए इन्हें बर्मा में गिरफ्तार कर लिया गया।सरकार के विरुध्द षड्यन्त्र करने के लए इन पर मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा दी गई।
 
 
६९> विपिन चन्द्र पाल (१८५८-१९३२):-----------------------
श्री पाल सामान्यतया भारत में क्रांतिकारी विचारधारा के जनक माने जाते है।इन्होंने अपना राजनितिक जीवन १८८६ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर प्रारम्भ किया तथा साथ ही परिदर्शक नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन किया और बाद में बंगाली पब्लिक ओपिनियन तथा दी ट्रिब्यून के सहायक संपादक के रूप में कार्य किया।पाल ब्रिटिश साम्राज्य के बाहर भारतीय स्वराज के महान व्याख्याता थे।यह जातिप्रथा तथा अंतरजातीय खान-पान और अंतरजातीय व्यवहार संबन्धी कठोर नियमो के विरोधी थे।यह प्रख्यात लेखक और प्रभावशाली वक्ता थे।मेरे जीवन और समय की यादे उनकी अति प्रसिध्द रचना है।
 
 
७०>गोविन्द वल्लभ पन्त (१८८७-१९६१):-----------------
इनका जन्म अल्मोड़ा(उत्तर प्रदेश) में हुआ था।वह व्यवसाय से वकील थे।स्वतन्त्रा आंदोलन में इन्होंने सक्रियता से भाग लिया और साइमन कमीशन (१९२७) के विरुध्द प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए यह लाठी-चार्ज में बुरी तरह घायल हो गए थे।१९४६ में यह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बने।इन्होंने कृषि एंव अन्य बहुत के सुधारो की आधारशिला रखी।बाद में यह केंद्रीय में गृहमंत्री भी रहे।
 
 
७१>टी.प्रकाशन (१८७२-१९५७):--------------------
स्वतन्त्रा सेनानी और विख्यात राष्ट्रीय नेता जो आंध्र केसरी (आंध्र के शेर) के नाम से प्रसिध्द हुए।१९२६ में कांग्रेस पार्टी की ओर से मद्रास विधान सभा के लिए चुने गए ,लेकिन उन्होंने चार वर्ष बाद नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए त्यागपत्र दे दिया।पहले १९३० में और फिर १९३२ में इन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी। आंध्र प्रांत के कांग्रेस अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य रहे।१९३७ में मद्रास सरकार के मंत्री बने और बाद में कांग्रेस कार्य-समिति के विरोध के बावजूद यह मद्रास के मुख्यमंत्री बने।
 
७२>डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (१८८४-१९६३):----------------------
बिहार के कांग्रेसी नेता।यह सविधान सभा के अध्यक्ष थे।सविधान लागू होने के बाद यह भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।
 
७३>वासुदेव बलवल फड़के (१८४५-८३):--------------------------
प्रारम्भिक क्रान्तिकारियो में अग्रगरन्थ ,इन्होंने बम्बई प्रेसिडेंसी के रामोशी जनजाति के लोगो को संगठित करके प्रशिक्षित लड़ाकू बल में परिवर्तित किया।इन्हें काले पानी की सजा दी गई तथा १८८३ में आमरण अनशन में इसकी म्रत्यु हो गई।
 
 
७४>सेठ जमनालाल बजाज (१८८९-१९४२):--------------------
यह मानवतावादी थे। इन्होंने ३० वर्ष की अवस्था में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया।भारत के प्रति ब्रिटिश सरकार की नीति के विरोध में आपने राय बहादुर की उपाधि त्याग दी।आप कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे १९२०-४२,गांधी सेवा संघ के संस्थापक रहे तथा कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में स्वागत समिति के अध्यक्ष के रूप में बहुमूल्य कार्य किया।ग्रामीण उद्योगों तथा हथकरघा वस्त्र के विकास में इनकी गहन रूचि थी।
 
 
७५>मनिंदर नाथ बनर्जी (मृत्यु १९३४):----------------------
आप काकोरी षड्यन्त्र से सम्बध्द कांतिकारी थे।इन्होंने काकोरी षड्यन्त्र काण्ड की जांच-पड़ताल करने वाले पुलिस उप-अधीक्षक अपने चाचा जे.एन.बनर्जी की हत्या कर दी थी।इसमें इन्हें गिरफ्तार करके दस वर्ष कड़ी कैद की सजा हुई। पुलिस दुर्व्यवहार के विरोध में प्रारम्भ किए गए ६६ दिनों की भूख हरताल के उपरान्त २०जुन ,१९३४ को फतेहगढ़ के केंद्रीय कारागार में इनकी म्रत्यु हो गई।
 
 
७६>वोमेश चन्द्र बोनर्जी (१८४४-१९०५):------------------
यह एक सफल वकील भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष तथा ब्रिटिश हाउस आफ कॉमन्स के लिए चुनाव लड़ने वाले प्रथम भारतीय थे।आप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष (१८८५ तथा १८९१) चुने गए थे तथा राजनीति में उदारवादी बने रहे।
 
 
७७>सुरेन्द्र नाथ बनर्जी (१८४८-१९२५):----------------------
यह राष्ट्रवादी नेता, लोकप्रिय पत्रकार तथा समर्पित निष्ठावान शिक्षाविद थे।यह १८९६ में भारतीय सिविल सेवा के लिए उत्तीर्ण घोषित किए गए लेकिन तकनीकी आधारों पर इन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया।न्यायालय का निर्णय इनके पक्ष में होने पर इन्हें यथावत सिविल सेवा में लिया गया।लेकिन शीघ्र ही खोखले आधारों पर इन्हें सेवा से बर्खास्त भी कर दिया गया।बर्खास्तगी के उपरान्त ,इन्होंने सभी उत्पीड़ित लोगो की शिकायतों के निवारण के लिए संघर्ष करते हुए जन आंदोलनकारी की भूमिका अपनाई।इन्होंने सम्पूर्ण देश के राजनितिक संघठनो के प्रतिनिधियों के राष्ट्रीय समेलन आयोजित करने के विचार का समर्थन किया।बंगाली समाचार-पत्र का प्रकाशन किया।यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापको में थे।भारतीय राजनितिक मंच पर महात्मा गांधी के आविर्भाव के उपरान्त इन्होंने १९१८ में कांग्रेस को छोर दिया।जनवरी १९२१ में बंगाल के गवर्नर ने इन्हें स्थानीय स्वाशासन और स्वास्थ्य मंत्री बनाया।इस पड़ प्राप्त करने वाले पहले भारतीय बने।इस पद के लिए बनर्जी की स्वीकृति का तीव्र विरोध हुआ और राष्ट्रवादियो ने बाद में इनसे कोई संबन्ध न रखा।यह इंडियन एसोशिएसन एंव इंडियन नेशनल कांफ्रेस के संस्थापक थे।
 
 
७८>राम प्रसाद विस्मिल (१८९७-१९२७):------------------
इनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर नगर में हुआ था।यह हिंदुस्तान समाजवादी गणतन्त्रीय संघ सेना के सदस्य थे।इन्हें ९ अगस्त १९२५ को काकोरी ट्रेन डकैती में भाग लेने के अपराध में म्रत्युदंड दिया गया।आजादी के प्रसिध्द आह्वान गीत सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है के लेखक राम प्रसाद विस्मिल ही थे।
 
 
७९> एनी बिसेन्ट (१८४७-१९३३):---------------------------
यह आयरिश अंग्रेज महिला थी और थियोसाफिकल सोसाइटी के लिए काम करने हेतु १८९३ में भारत आई थी और वाराणासी में आकर बस गई।यहाँ इन्होंने १८९८ में सेंट्रल हिन्दू कालेज की स्थापना की।१९०७ में इन्हें थियोसाफिकल सोसाइटी का अध्यक्ष चुना गया।इन्होंने भारत की स्वतन्त्रता के लिए बड़ी लगन से कार्य किया। १९१४ में इन्होंने कामनविल तथा न्यू इंडिया पत्रो का प्रकाशन शुरू किया ,इन्होंने भारत की स्वतन्त्रता के लिए तेजी से जनमत तैयार करने में बहुमूल्य भूमिका निभाई।१९१५ में इन्होंने स्वदेशी आंदोलन शुरू करने के लिए होम रूल लीग की स्थापना की और १९१७ में इन्हें कलकत्ता अधिवेशन में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।इसी वर्ष इन्होंने भारतीय बालचर संघ और भारतीय महिला संघ की भी स्थापना की।इन्होंने बहुत से स्कुल और कालेजो की स्थापना की।१९१८ में इन्होंने आरयार में राष्ट्रीय विश्वविधालय की स्थापना की।यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्षा थी।
 
 
 
८०> आनंद मोहन बोस (१८४७-१९०६):----------------------
यह बंगाल के अग्रणी शिक्षविद समाजसुधारक तथा राष्ट्रवादी थे।इन्होंने महिलाओ में शिक्षा का प्रचार करने के लिए अथक प्रयास किया।१८५३ में इन्होंने कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर देशी भाषा प्रेस अधिनियम तथा इल्बर्ट बिल के विरोध में एक आंदोलन प्रारम्भ किया।यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन (१८९८) के अध्यक्ष थे।अपने जीवन के अंतिम वर्षो में इन्होंने बंगाल के विभाजन का विरोध किया।
 
 
८१> खुदीराम बोस (१८८९-१९०८):------------------
यह भारत के उन प्रारम्भिक क्रान्तिकारियो में थे जिन्हें ११ अगस्त १९०८ को फांसी दी गई।यह बरिन्द घोष की क्रांतिकारी समिति युगांतर के सदस्य थे।इन्होंने प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर मुजफ्फरपुर (बिहार)से अंग्रेज न्यायधीश किंसफोर्ड के वाहन पर बम फेका था।इस मुजफ्फरपुर षड्यन्त्र के अपराध में इन्हें गिरफ्तार किया गया तथा म्रत्युदंड दे दिया गया।
 
 
८२>रास बिहारी बोस (१८८६-१९४५):--------------------
यह एक महान क्रांतिकारी थे।इनका संबन्ध युगांतर तथा गदर पार्टी से था।१९१२ में इन्होंने और बसन्त विश्वास ने चादनी चौक दिल्ली में वाइसराय हार्डिग के जुलुस पर एक बम फेका।१९१५ में यह भागकर जापान चले गए जहां इन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संघ(१९२४) और आजाद हिन्द फौज की भी स्थापना की।
 
 
८३>सत्येंद्र नाथ बोस (१८८२-१९०८):---------------------
यह मिदनापुर की क्रांतिकारी गुप्त समिति आनंद मठ के संस्थापक थे।बंगाल में स्वदेशी आंदोलन में इनकी भूमिका के कारण अप्रैल १९०६ में इन्हें सरकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।मुजफ्फरपुर बम काण्ड, अलीपुर बम काण्ड तथा इस काण्ड में मुखबिर नरेंद्र गोसाई की अलीपुर जेल में हत्या करने कारण इन्हें म्रत्युदंड दिया गया।
 
 
८४>सुभाष चन्द्र बोस (१८९७-१९४५):---------------------
इनका जन्म उड़ीसा में कटक में हुआ था।यह १९२० में भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा में बैठे तथा योग्यता-क्रम में चौथा स्थान प्राप्त किया लेकिन सिविल सेवा में अपनी परिवीक्षा पूरी करने के पहले ही त्यागपत्र दे दिया तथा अप्रैल १९२१ में कांग्रेस में शामिल हो गए और राष्ट्रीय आंदोलन में कूद परे।यह १९३८ में हरिपुर कांग्रेस अधिवेशन के एकमत से अध्यक्ष चुने गए तथा १९३९ में त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी व्दारा समर्पित डॉ.पट्टाभि सीतारमैया को पराजित कर दूसरी बार अध्यक्ष चुने गए।महात्मा गांधी और कांग्रेस कार्यकारी सिमिति से मतभेद होने के कारण इन्होंने अप्रैल १९३९ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता से त्यागपत्र दे दिया और अखिल भारतीय फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की ,लेकिन जनवरी १९४१ में यह भारत से पलायन कर बर्लिन (जर्मनी ) पहुचे जहां से यह २ जुलाई १९४३ को सिंगापुर आए।सिंगापुर में रासबिहारी बोस ने पूर्वी एशिया में भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन और आजाद हिन्द फौज (भारतीय राष्ट्रीय सेना) की कमान सुभाष चन्द्र बोस को सौप दी। २५ अगस्त १९४३ को सुभाष इसके सरवोच्च सेनापति बने।जनवरी १९४४ में भारतीय राष्ट्रीय सेना का मुख्यालय सिंगापुर से रंगून में स्थानांतररित कर दिया गया।जपानी सरकार ने अंडमान और निकोबार व्दिपो को उन्हें सुपुर्द कर दिया जिनका उन्होंने क्रमशः शहीद और स्वराज व्दीप नाम दिया। १८ अगस्त १९४५ को टाईपोई ,ताइवान में हवाई दरघर्टना में इनकी म्रत्यु हो गई (पर उनकी म्रत्यु पर अब भी संस्पेंस बना हुआ है)।
 
 
८५>बालमुकुंद भाई (१८९१-१९१९):--------------------
इन्होंने अपना राजनितिक जीवन लाला राजपत राय के अनुयायी के रूप में प्रारम्भ किया, लेकिन बाद में ये लाला हरदयाल तथा रास बिहारी बोस के क्रांतिकारी समूहों में सम्मिलित हो गए।यह १९१२ में दिल्ली में वाइसराय लार्ड हार्डिग पर बम फेकने वाले क्रांतिकारी समूह के एक सदस्य थे।इन्हें हार्डिग बम काण्ड में गिरफ्तार करके फांसी दे दी गई।
 
 
८६>सोहन सिंह भाकना (१८७०-१९६८):---------------
यह नामधारी सिख थे और नॉकरी की तलाश में १९०९ में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए।वहा इन्होंने १९१३ में हिन्द संघ की स्थापना की जो आगे चल कर प्रशांत तटीय हिन्द संघ के नाम से प्रसिध्द हुआ।संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा में भारतीय निवासियों के इस संघ के संस्थापक अध्यक्ष सोहन सिंह भाकना और सचिव लाला हरदयाल थे।इस संघ ने गदर नामक पत्र का प्रकाशन शुरू किया, जिसके उपरान्त संघ की क्रांतिकारी गतिविधियो गदर पार्टी के नाम से प्रसिध्द हुई।सोहन सिंह का संबन्ध १९१४ की कामागाटा मारू जहाज की घटना से भी था।गदर पार्टी की गतिविधियो में इनकी भूमिका के कारण इन्हें गिरफ्तार किया गया तथा म्रत्युदंड सुनाया गया।लेकिन बाद में इनकी उस सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।इन्होंने अंडमान और भारत की अन्य जेलो में १६ वर्ष व्यतीत किए।१९३० में रिहा हुए तथा अपना शेष जीवन किसान सभाओ के संगठन में लागा दिया।
 
 
८७>सुब्रहण्यम भारती (१८८२-१९२१):---------------
तमिल पुनर्जागरण के विख्यात कवि सुब्रहण्यम जब केवल ग्यारह वर्ष के थे,तब इत्यापुरम (तमिलनाडु) के राजा ने इन्हें भारती की उपाधि से विभूषित किया था (भारतीय, सरस्वती का एक लोकप्रिय नाम है जो विधा की देवी है) यह कांग्रेस के उग्रपंथियों से संबध्द थे।इन्होंने गांधीजी तथा गुरु गोविन्द सिंह सहित सुप्रसिध्द व्यक्तियों व देवी-देवताओ की प्रशंसा में गीत लिखे।
 
 
८८>रामचन्द्र भारव्दाज(१८८६-१९१८):----------------------
यह क्रांतिकारी पत्रकार तथा आफताब आकाश तथा भारतमाता पत्रो के संपादक थे।यह १९११ में संयुक्त राज अमेरिका चले गए जहां इन्होंने गदर पार्टी के लिए काम किया और गदर पत्र का संपादन किया तथा बाद में लाला हरदयाल के संयुक्त राज्य अमेरिका से चले जाने पर आंदोलन के नेता के रूप में भी काम किया।ब्रिटिश सरकार के एक गुप्त एजेंट ने सैन फ्रैसिस्को में २३ अप्रैल १९१८ को इनकी हत्या कर दी।
 
 
८९>विनायक नरहरि भावे (१८९५-१९८२):---------------------
विनोबा जी महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्राण परिवार में जन्मे और महात्मा गांधी के अति विश्वासपात्र व्यक्तियों में थे।इन्होंने नागपुर के झंडा सत्याग्रह ,केरल में मन्दिर प्रवेश आंदोलन ,नमक सत्याग्रह तथा १९३० में दण्डी मार्च में नेतृत्व किया तथा भारत छोरो आंदोलन में भाग लिया।यह पक्के गांधीवादी थे तथा स्वतन्त्रता के बाद इन्होंने भूदान और सर्बोदय आंदोलनों का नेतृत्व किया।
 
 
९०> राजा महेंद्र प्रताप (१८८६-१९६४):-------------------------
यह उन विरल भारतीय राजाओ में से थे जिन्होंने देश के स्वाधीनता संग्राम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया तथा भारत से बाहर रहकर क्रांतिकारी आंदोलन में योगदान दिया।इनोने १९१४ से १९४५ तक लगभग तीन दशक तक देश से बाहर अमेरिका,जर्मनी ,चीन,अफगानिस्तान ,जापान आदि देशो में रहकर भारत की आजादी के लिए अथक प्रयास किया।
१९१५ में यह अफगानिस्तान पहुचे जहां रहकर इन्होंने काबुल में भारतीयों क्रान्तिकारियो के नेता के रूप में कार्य किया।इन्होंने काबुल में स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार का गठन किया जिसके राष्ट्रपति वे स्वयं ही थे तथा मौलाना बरकलउल्ला खा इसके प्रधानमंत्री थे।बाद में इन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंदुस्तान गदर पार्टी के साथ मिलकर कार्य किया जहां से यह १९२६ में अंग्रेजो के विरुध्द विद्रोह का संयोजन करने के लिए तिब्बत भेजे गए।अंग्रेज सरकार के विरुध्द कार्य का सयोजन करने के लिए तिब्बत भेजे गए।अंग्रेज सरकार के विरुध्द कार्य करते हुए यह बाद में जापान की ओर उन्मुख हुए और वहा इन्होंने इंडियन लीग की स्थापना की।राजा महेंद्र प्रताप सर्वधर्म एकता तथा सर्वजाति समभाव में अटूट विश्वास रखते थे।इन्होंने विधार्थियो की तकनीकी और वयाव्सायिक शिक्षा पर भी बल दिया।इन्होंने ब्रन्दावन (उत्तर प्रदेश)में प्रेम विधालय नामक तकनीकी महाविधालय स्थापित किया।यह आर्थिक समानता के पक्षधर थे और इन्होंने वर्ग-संघर्ष की अवधारणा का विरोध किया।स्वंय भूस्वामी होते हुए भी इन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन की वकालत की।यह उधमशील पत्रकार भी थे।१९१४ में विदेश जाने से पहले इन्होंने दो समाचार पत्र प्रेम हिंदी में और निर्बल सबक हिंदी और उर्दू में निकाले।
 
 
टी.के माधवन (१८८६-१९३०):----------------------
यह महान समाज सुधारक थे।इन्होंने केरल में मन्दिर प्रवेश आंदोलन चलाया।यह श्री नारायण गुरु के शिष्य थे और १९२७ में यह श्री नारायण धर्म परिपालन योगम के संगठन सचिव चने गए थे।इन्होंने १९२४ में बैकॉम सत्याग्रह का सफल आयोजन किया जिसके फलस्वरूप यह नेतृत्व के शिखर पर पहुच गए।यह आंदोलन ३०मार्च १९२४ को आरम्भ होकर पुरे २० माह तक चला।इस आंदोलन का उद्देश्य यह था की उन निम्न जारियो के हिन्दुओ के लिए मन्दिरो के प्रवेश व्दारों को उन्मुक्त कराना था,जिन्हें यह अधिकार अभी तक प्रदान नहीं किए गए थे।इस मन्दिर प्रवेश आंदोलन के लिए सत्याग्रहियों ने बैकॉम मन्दिर को चुना जिसका नेतृत्व श्री माधवन ने किया।७ मार्च १९२५ को महात्मा गांधी ने भी यहां आकर श्री माधवन के साथ डेरा दाल दिया और संघर्ष को सफल बनाने में उनका साथ दिया।अपने पुरे जीवन काल में माधवन गांधीजी की कार्य-पध्दति से प्रेरणा लेते रहे।समाज सुधार के साथ-साथ श्री माधवन ने राजनीति में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यसमिति के सदस्य भी रहे।इसके अतिरिक्त इन्होंने पत्रकारिता तथा साहित्य के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया।१९१७ से यह देशाभिमानी दैनिक के संपादक रहे।
 
 
९२>मदन मोहन मालवीय (१८६१-१९४६):--------------
यह अग्रणी राष्ट्रवादी तथा देश भक्त थे।आरम्भ में एक स्कुल अध्यापक तथा बाद में व्यवसाय से वकील रहे।इन्होंने १९०९ में वकालत छोर दी तथा पत्रकारिता में अपनी रूचि दर्शायी।इन्होंने हिन्दी और अंग्रेजी में हिंदुस्तान ,दी इंडियन यूनियन, अभ्युदय (साप्ताहिक), मर्यादा तथा किसान मासिक तथा अंग्रेजी दैनिक दी लीडर नामक कई पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित की।यह १८८६ से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे तथा १९०९ में इसके अध्यक्ष भी रहे।१९२१ में इम्पीरियल कौंसिल के लिए चने गए और अंग्रेजो की नीतियों के उत्कट आलोचक रहे।यह सच्चे हिन्दू थे ,हिन्दू महासभा के संस्थापक सदस्य थे।इन्होंने १९१६ में बनारस हिन्दू विश्वविधालय की स्थापना की और १९१९ से १९३८ तक इसके कुलपति बने रहे।
 
 
९३>बहरामजी मालाबारी (१८५३-१९१२):--------------------
आप महान पारसी समाजसुधारक तथा दादाभाई नोरजी, एम.जी.रनाडे, दिनशा वाचा तथा अन्य समकालीन राजनितिक नेताओ और समाजसुधारकों के निकट सहयोगी रहे।यह जाती प्रथा और बाल विवाह के विरोधी थे, विधवा पुनर्विवाह ,स्त्री पुरुष की समानता और महिलाओ की स्थिति सुधारने के पक्षधर थे।इन्होंने समाज सेवा संगठन सेवा सदन की स्थापना की तथा बायस आफ इंडिया समाचार-पत्र के संपादक भी रहे।
 
 
९४>दीनबन्धु मित्रा (१८३०-७३):---------------
यह बंगाल के महान साहित्यकार थे।इन्होंने १८६० में ढाका से प्रकाशित अपने बंगाली नाटक निल दर्पण नाटकम में यूरोपीय निल बागान मालिको व्दारा निल की खेती करने वाले किसानों के शोषण के विशुध्द बड़ा मार्मिक वर्णन किया है।बागान मालिको के मनमाने अत्याचारो के ह्रदय दहलाने वाले चित्रण से जनता को इस हद तक उत्तेजित किया की निल किसानों की हित रक्षा के लिए संघर्ष का सूत्रपात हुआ।निल दर्पण का अंग्रेजी अनुवाद मधुसूदन दत्त ने प्रकाशित कराया।
 
९५>नब गोपाल मित्रा (१८४२-१८९४):----------------
आप बंगाली कवि,नाटककार तथा राष्ट्रवाद के साकार प्रतीक थे।इनके व्दारा स्थापित सभी संस्थाओ के नाम नेशनल से आरम्भ होने के कारण इन्हें सामान्यता नेशनल मित्रा कहा जाने लगा।यह ब्रह्रा समाज के अनुयायी तथा आदि ब्रह्रा समाज के नेता थे।इन्होंने एक साप्ताहिक नेशनल पेपर का प्रकाशन किया और सामान्यतया राष्ट्रीय या जातीय मेला के नाम से प्रसिध्द हिन्दू मेला को बढावा दिया।इस मेला का उद्देश्य जनता में स्वावलम्बन ,आत्मनिर्भरता की भावना का विकास और स्वदेशी ,उधोग ,साहित्य और कला का संवर्धण करना था।नब गोपाल ने बहुत सी संस्थाओ की स्थापना की।इनमे से सभी के नाम से पहले नेशनल लगा हुआ था जैसे नेशनल स्कुल, नेशनल जिमखाना ,नेशनल सर्कस ,नेशनल थियेटर (यह कलकत्ता का प्रथम सार्वजनिक थियेटर था) आदि।
 
 
९६>मीरा बेन (१८९२-१९८२):-----------------
इनका जन्म इंग्लैंड में हुआ था और इनका वास्तविक नाम मैडलीन स्लेड था। गांधीजी ने इनका नाम मीरा बेन रखा। यह गांधीजी की शिष्या और सहयोगी थी।इन्हें १९८२ में पद्दम विभूषण से सम्मनित किया गया था।
 
९७>जतीन्द्रनाथ मुखर्जी (१८७९-१९१५):--------------------------
बंगाल के क्रन्तिकारी ,विवेकानन्द और अरविंद घोष के निष्ठवान अनुयायी और युगांतर अनुशीलन समिति तथा गदर पार्टी सरीखी क्रांतिकारी समितियों को सक्रिय सदस्य रहे।गदर पार्टी से संबध्द लोगो के साथ इन्होंने घनिष्ठ सबन्ध बनाये रखा तथा बंगाल और उड़ीसा में क्रांतिकारी गतिविधियो का संचालन किया।९ सितम्बर १९१५ को बालासोर में इनकी मुठभेड़ एक सैनिक तथा पुलिश टुकड़ी से हुई ,जिसमे उन्हें प्राणाघातक घाव लगे।अपनी असाधारत निर्मीकता और दिव्य शरीरिक शक्ति के कारण यह समान्यतया बाधा जतिन था बाघ जतिन के नाम से प्रसिध्द थे।
 
९८>के.एम मुंशी (१८८७-१९७१):----------------------------
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में इनकी सक्रिय भूमिका रही तथा स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद आपने महत्वपूर्ण करकरी पदों को शुशोभित किया।यह महान लेखक और शिक्षाविद थे और भारतीय विधा भवन नामक न्यास के संस्थापक थे।उस न्यास का कार्य शेक्क्षिक संस्थाओ को संचालन तथा भारत विधा संबन्धी पुस्तको का प्रकाशन करना था।स्वत्रन्तन प्राप्ति के बाद यह भारत के खाध मंत्री रहे और इन्होंने पर्यावरण के विकास के लिए अधिक व्रक्ष लगाओ का नारा दिया।यह उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी रहे।
 
९९>फिरोजशाह मेहता (१८४५-१९१५):---------------------
यह अग्रणी राष्ट्रवादी थे जिन्हें लोगो बम्बई का बेताज बादशाह के नाम से पुकारते थे।यह मध्यगवर्गीय पारसी परिवार के थे।बम्बई महाप्रांतीय संघ के संस्थापक और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबंधित रहे।यह वीशेष प्रकार के उदारवादी और ब्रिटिश राजभक्त ,किन्तु सच्चे राष्ट्रवादी थे।
 
 
१००>मौलाना मोहम्मद अली (१८७८-१९३१):-------------
आप प्रखर राष्ट्रवादी वक्ता तथा पत्रकार थे।यह खिलाफत आंदोलन के प्रमुख नेता थे।आप काकीनाडा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (१९२३)के ३८ वे अधिवेशन के अध्यक्ष भी रहे।परवर्ती वर्षो में कांग्रेस से इनका मतभेद हो गया किन्तु अंत तक यह स्वतन्त्रता सेनानी बने रहे।
 
 
१०१>इन्दुलाल याजिक (१८९२-१९७२):----------------------
स्वतन्त्रता सेनानी ,सामाजिक कार्यकर्ता,प्रतिभावन पत्रकार तथा गुजरात के किसान नेता।इन्होंने होम रूल आंदोलन और खेरा सत्याग्रह के लिए सक्रिय रूप से कार्य किया।उन्होंने नव जीवन आने सत्य तथा युग धर्म नामक दो गुजराती मासिक पत्रिकाएं तथा एक दैनिक पत्र नूतन गुजरात निकाला।इन्होंने भील बच्चो के लिए कुछ स्कुल खोले तथा अन्त्यज सेवा मण्डल के सचिव रहे ,जिसके अध्यक्ष ठक्कर बापा थे। १९३६ से आगे यह किसान सभा के साथ बरी सक्रियता से जुड़े रहे और गुजरात के किसानों के बिच सहकारी आंदोलन का संगठन किया।१९४२ में इन्होंने अखिल भारत किसान सभा के वार्षिक सम्मेलन की अध्यक्षता की। यह गुजरात विधापीठ के संस्थापक थे।१९५६ में इन्होंने पृथक राज्य के लिए महा-गुजरात आंदोलन का नेतृत्व किया और महा-गुजरात जनता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष बने।
 
१०२>पण्डित रमाबाई :--------------------
महाराष्ट्र की महान महिला सामाजिक कार्यकर्ता और समाजसुधारिका। जिन्होंने १८८३ में ईसाई धर्म अपना लिया और जीवन भर महिलाओ की शिक्षा तथा उनके उत्थान के लिए कार्य किया।१८८९ में इन्होंने विधवाओ तथा अन्य महिलाओ की शिक्षा के लिए शारदा सदन की स्थापना की।इन्होंने बेसहारा महिलाओ को आश्रय देने के लिए मुक्ति सदन तथा पतित महिलाओ के लिए एक उध्दार गृह कृपा सदन की भी स्थापना की।इन्होंने मराठी और अंग्रेजी में अनेक पुस्तके भी लिखी।
 
१०३>शिवराम राजगुरु (१९०८-३१):-------------------
महाराष्ट्रीय ब्राह्रण तथा भगत सिंह के निकट सहयोगी।१७ दिसंबर ,१९२८ को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक जे.पि.सांडर्स को गोली मारने की घटना में इनका हाथ था।लाहौर षड्यन्त्र काण्ड में अपराधी के रूप में इन पर मुकदमा चलाया गया और भक्तसिंह तथा सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को इन्हें भी फांसी दे दी गई।
 
१०४>सी.राजगोपालाचारी (१८७८-१९७२):----------------
आप चतुर राजनितिक नेता तथा स्पष्ट विचारक थे।यह मद्रास के मुख्य मंत्री (१९३७-३९),१९४७ में केंद्र सरकार के मंत्री १९४७ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ,१९४८-५० में भारत के प्रथम और अंतिम गवर्नर जनरल रहे।इन्होंने दशमलव प्रणाली पर आधारित सिक्को के चलन तथा दक्षिण में हिंदी लागु करने का विरोध किया।इन्होंने स्वतन्त्र पार्टी के नाम से नई राजनितिक पार्टी का गठन किया।
 
१०५>सर्वपल्ली राधा कृष्णन(१८८८-१९६७):-----------------------
इनका जन्म तमिलनाडु के धार्मिक ब्राह्राण परिवार में हुआ था।यह धर्म और दर्शन के महान विव्दान थे।लन्दन,मैनचेस्टर तथा आक्सफोर्ड सहित चार-पांच विश्वविधालय के उप-कुलपति रहे। स्वाधीनता के बाद आपने राजकीय पदों को सुशोभित किया।इनमे रूस में भारत के राजदूत ,भारत के दो बार उपराष्ट्रपति (१९५२-५६) तथा (१९५७-६२) ,भारत के राष्ट्रपति (१९६२-६६) उल्लेखनीय है।यह दर्शनशास्त्र ,ब्राह्रा विज्ञान ,शिक्षा, समाजिक तथा सांस्कृतिक विषयो की बहुत सी पण्डित्यपूर्ण तथा विव्दतापूर्ण पुस्तको के लेखक रहे ,जिनमे से कुछ पुस्तके निम्नवत है --------भारतीय दर्शन ,सभ्यता का भविष्य तथा जीवन की आदर्शवादी दृष्टि।
 
१०७>मानवेन्द्र नाथ राय (एग.एन.राय) (१८८७-१९५४):---------
सभ्यवादी नेता,जो विश्व के अनेक साभ्यवादी नेताओ के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे।लेनिन के निमन्त्रण पर वे भूतपूर्व सोवित संघ गए।१९२४ में इन्हें कम्युनिष्ट इंटरनेशनल का पर्णकालिक सदस्य चुना गया तथा चीन सहित एशिया में यह साम्यवादी आंदोलन का विकास करने का भी प्रयास किया।इन्हें कानपुर साम्यवादी षड्यन्त्र काण्ड में गिरफ्तार क्र ६वर्ष की कैद की सजा दी गई जिसे इन्होंने विश्व युध्द प्रारंभ होने के बाद छोर दिया ,फिर इन्होंने आतिवादी प्रजातांत्रिक पार्टी तथा भारतीय श्रमिक संघ नामक श्रमिक संघ का भी गठन किया।परवर्ती वर्षो में यह आतिवादी प्रजातांत्रिक पार्टी भंग करके उग्र मानवतावादी नग गए।यह अंतराष्ट्रीय मानवतावाद नामक संगठन के संस्थापक रहे।
 
 
१०८>लाला लाजपत राय (१८६५-१९३८):------------------
पंजाब के प्रसिध्द आर्य समाजी तथा उग्रवादी नेता लाजपतराय जी सामान्यतया पंजाब केसरी के नाम से जाने जाते है।इन्होंने अपना राजनितिक जीवन इलाहाबाद में कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेकर प्रारम्भ किया।यह भारत में उग्रवादी राजनीति के तीन स्तम्भो में से एक थे, अन्य दो थे---बी.जी.तिलक और बी.सी.पाल।१९०७ में इन्होंने पंजाब में विशाल कृषक आंदोलन का संगठन और उसका नेतृत्व किया।इसी कारण इन्हें अजित सिंह के साथ बर्मा में निर्वासित कर दिया गया।अपनी रिहाई के उपरान्त आप लम्बी भाषण माला के लिए यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका भी गए।१९२० में इन्होंने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की।इन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और उसके स्थगन के उपरान्त यह स्वराज पार्टी में शामिल हो गए।३० अक्टूबर,१९२८ को लाहौर में साइमन आयोग विरोध जुलुस का नेतृत्व करते हुए इन पर निर्दयतापूर्वक लाठी-चार्ज किया गया तथा उसकी चोट के कारण अट्ठारह दिनों बाद १७ नवम्बर १९२८ को इनकी मुत्यु हो गई।अपने ऊपर होने वाले पुलिस प्रहारों पर किया गया एक-एक आघात भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के कफ़न में एक कील का काम करेगा।
लाला लाजपत राय एक बहुसर्जक लेखक थे।पत्रकारिता में इनकी गहन रूचि थी और इन्होंने एक उर्दू दैनिक बन्दे मातरम और एक अंग्रेजी साप्ताहिक दी पीपुल निकाला।इसके पहले यह संयुक्त राज्य अमेरिका में यंग इंडिया का प्रकाशन कर चुके थे।इनकी कुछ महत्त्वपूर्ण करतिया है; भारत को इंग्लैंड का ऋण ,स्वतन्त्रता के लिए भारत की इच्छा ,युवा भारत का आह्वान और दुखी भारत।
आधुनिक शिक्षा के प्रसार में भी इनका योगदान रहा।महात्मा हंसराज के सहयोग से इन्होंने डी.ये.वी.कॉलेज ,लाहौर की स्थापना की। इन्होंने राष्ट्रीय कॉलेज की भी स्थापना की (सरदार भगत सिंह और सुखदेव जैसे दो सुविख्यात व्यक्ति इसी कॉलेज की देने थे)।
 
 
१०९>राजेन्द्र नाथ लाहिरी (१८९८-१९२७):---------------
महान क्रांतिकारी और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.एस.आर.ए.) के प्रमुख सदस्य।९ अगस्त १९४५ को काकोरी डकैती और शेरगंज ,बिचपुरी तथा मैनपुरी आदि में क्रान्तिकारियो व्दारा किए हमलो में इनकी सक्रिय भूमिका रही।इन्हें गिरफ्तार करके म्रत्युदंड दे दिया गया।
 
११०>ईश्वर चन्द्र विधासागर (१८२०-१८९१):------------------
ईस्वर चन्द्र बंधापाध्याय बंगाल के विव्दान तथा प्रसिध्द समाजसुधारक थे।विधासागर की उपाधि इन्हें संस्कृत कॉलेज ,कलकत्ता के अधिकारी वर्ग ने प्रदान की थी।यहां यह अध्यापक रहे थे।यह दृढ़ प्रतिज्ञ समाजसुधारक थे तथा इन्होंने विधवा पुनर्विवाह की आवाज उठाई व समाज से बहुविवाह प्रथा को दूर करने के लिए जोरदार संघर्ष शुरू किया।इन्होंने बंगाली तथा संस्कृत में बहुत सी पुस्तके भी लिखी।
 
 
१११>हर बिलास शारदा (१८६७-१९५५):------------
आप महान समाज सुधारक ,विव्दान तथा राजस्थान के आर्य समाजी नेता थे।इन्होंने केंद्रीय विधानसभा में बहुत से समाजिक विधानो के लिए मार्ग प्रशस्त किया।यह बाल विवाह निरोधक कानून (१९२९) के नियन्ता थे ,जिसे सामान्यतया शारदा अधिनियम के नाम से जाना जाता है।इन्होंने कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन के साथ १९२९ में लाहौर में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय समाज सम्मेलन की भी अध्यक्षता की।
 
 
११२>स्वामी श्रध्दानंद (१८५६-१९२६):---------------------
आप पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी,शिक्षाविद और राष्ट्रवादी नेता थे।इन्होंने जालन्धर से सत्यधर्म प्रचारक साप्ताहिक निकाला और १९०२ में कनखल (हरिव्दार) में गंगा के किनारे गुरुकुल की स्थापना की।यह रॉलेट एक्ट के विरुध्द प्रारम्भ किये गए राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए तथा १९१९ में कांग्रेस के अम्रतसर अधिवेशन की स्वागत समिति के अध्यक्ष चुने गए।यह उदारवादी समाज सुधारक थे।इन्होंने विधवा पुनर्विवाह तथा स्त्री शिक्षा पर बल दिया तथा जाती-भेद और बाल-विवाह का विरोध किया।यह आर्य समाज की शुध्दि सभा के अध्यक्ष थे।इनके धर्मांतरण कार्यक्रम से मुसलमान नाराज हो गए।इसी कारण एक धर्मान्ध मुसलमान ने १९२६ में इनकी हत्या कर दी।
 
 
११३>श्री नारायण गुरु (१८४५-१९२८):--------------
आप केरल के प्रख्यात सामाजिक-धार्मिक सुधारक थे।इन्होंने ब्राह्णों के बर्चस्व के विरुध्द अनवरत संघर्ष किया तथा केरल में शिक्षा के प्रचार के लिए अत्यधिक कार्य किया।निम्न जाती के होने के बावजूद इन्होंने १८८८ में अरववीपुरम में शिव प्रतिमा का प्रतिष्ठापित की थी।अरववीपुरम की मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा ऐतिहासिक महत्व की विलक्षण घटना थी क्योकि निम्न जाती के व्यक्ति ने जिसका मन्दिर में जाना भी वर्जित था ,मन्दिर में जाकर स्वंय शिव की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी।मन्दिर की दिवार पर इन्होंने ये शब्द लिखवाए जाती और प्रजाति की विभाजनकारी दीवारे गिरा दो तथा मतमतान्तरों के बिच घ्रणा को समाप्त करो ,हम सब यहां भाई-बन्धु है।श्री नारायण गुरु लाखो लोगो के लिए संत,साधू,दर्शनिक,कवि और समाजसुधारक थे।स्वतन्त्रता और सामर्थ्य के इनके बहुत से नारो में शिक्षा और संगठन संबन्धी नारे भी महत्वपूर्ण थे।इनका यह विचार था की सभी धर्मो का निचोड़ एक तथा समान है तथा इन्होंने इस विचार का प्रतिपादन किया की सभी धर्मो का तुलनात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए।रवतीपुरम प्राण-प्रतिष्ठा का शताब्दी वर्ष १९८८ के शिवरात्रि के दिन मनाया गया था।
 
 
११४>एस सत्यमूर्ति (१८८७-१९४३):-----------------
सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता जिन्हें ,दक्षिण भारत की माशाल के नाम से लोकप्रियता मिली।इन्होंने सविनय अवज्ञा तथा भारत छोरो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।भारत छोरो आंदोलन के कारण हुई नजरबन्दी के दौरान जेल में ही इनकी म्रत्यु हो गई।
 
११५>सर तेज बाहादुर स्रप्रू (१८७५-१९४९):------------------
यह इलाहाबाद के अग्रणी विधिकेत्ता और कांग्रेस के नरम दल नेता थे।यह नेशनल कंवेंशन के संस्थापक और अध्यक्ष रहे जिसका गठन इन्होंने भारत के सवैधानिक विकास की दृष्टि से किया था।इन्होंने गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधत्व किया तथा दूसरे गोलमेज सम्मेलन में गांधीजी के भाग लेने की पृष्ठ भूमि भी इन्होंने ही तैयार की थी।१९३४ में डॉ.सप्रू को लन्दन में प्रिवी काउंसिल की सदस्यता का उच्च पर भी प्राप्त हुआ।
 
११६>सरदार भगत सिंह (१९०७-१९३१):-------------------
इनका जन्म पंजाब के एक जाट सिख किसान परिवार में हुआ था।डी.ए.वी.कालेज ,लाहौर में अपनी शिक्षा के दौरान यह दो अध्यापको भाई परमानंद और जयचन्द्र विधालकर के प्रभाव में आए।इन्होंने लाला लाजपत राय व्दारा स्थापित राष्ट्रीय विधालय ,लाहौर से स्तातक की परीक्षा पास की।१९२३ में यह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएसन में सम्मिलित हुए तथा उसके महासचिव चुने गए।१९२५ में इन्होंने युवाओ में क्रांतिकारी भावाना भरने के लिए लाहौर में नव जवान भारत सभा की स्थापना की।लाहौर में साइमन आयोग के विरोध में जुलुस का नेतृत्व करते हुए लाला लाजपत राय पर किये गए लाठी चार्ज का बदला लेने के लिए इन्होंने १८ दिसम्बर ,१९२८ को गोली चलाकर सांडर्स की हत्या कर दि।८ अप्रैल १९२९ को इन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली में केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका और इसके बाद स्वयं गिरफ्तारी के लिए उपस्थित हो गए।केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकने के अपराध में तथा लाहौर षड्यन्त्र केस में इन पर मुकदमा चलाया गया और फांसी सी सजा दि गई।२३ मार्च १९३१ को लाहौर की केंद्रीय जेल के भगत सिंह ,सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी दे दि गई।
 
 
११७>दयानंद सरस्वती (१८२४-९९):-------------------
आप अग्रणी समाज-सुधारक थे।इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में इन्होंने हिन्दू धर्म की विभिन्न कर्मकांडीय परपराओं की बड़े समालोचनात्मक दृष्टि से समीक्षा की।इन्होंने अस्पर्शयता निवारण ,विधवा पुनर्विवाह तथा हिन्दू समाज की अन्य बुराइयो के समापन के लिए संघर्ष किया।
 
११८>स्वामी सहजानंद सरस्वती (१८८९-१९५०):------------------
आप आजन्म सन्यासी ,स्वतन्त्रता सेनानी तथा बिहार के प्रमुख किसान नेता थे।इन्होंने असहयोग आंदोलन तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।१९२८ से इन्होंने सामन्तवादी उत्पीड़न से कृषको को छुटकारा दिलाने के लिए अनवरत संघर्ष सिया।इनके कृषि सुधार कार्यक्रम का वास्तविक लक्ष्य जमींदारी प्रथा का उन्मूलन तथा कृषको को मालिकन हक दिलाना था।इन्होंने सामन्तवादी उत्पीड़न के ज्वलन्त प्रश्नों जैसे बेगार ,बलात वसूली ,बेदखली आदि को उठाते हुए किसानों के प्रतिरोध और संघर्ष का आयोजन किया।१९२९ में इन्होंने अपने नेतृत्व में बिहार किसान सभा का गठन किया।इन्होंने अखिल भारतीय किसान सभा के विभिन्न सम्मेलन की भी अध्यक्षता की।किसानों के प्रति इनकी समर्पित सेवाओ के कारण इन्हें किसान-प्राण (किसानों का जीवन ) कहा जाने लगा।
 
 
११९>राचिन्द्र नाथ सान्याल (१८९५-१९४५):---------------------
रास बिहारी बोस के निकट सहयोगी।क्रांतिकारी के प्रथम चरण में यह गदर पार्टी की गतिविधियो से जुड़े रहे और उत्तर प्रदेश स्थित ७वी राजपूत रेंजीमेंट के जवानों में विद्रोह का संयोजन किया किन्तु समय से पहले ही योजना उजागर हो जाने से इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।इन्हें आजीवन काले पानी की सजा हुई और अंडमान भेज दिया गया । १९१९ में जब आम-माफ़ी को घोषणा हुई ,जब इनकी रिहाई हुई।अपनी रिहाई के उपरान्त इन्होंने दूसरे चरण की क्रांतिकारी गतिविधियो में भाग लेना प्रारंभ कर दिया और इन्होंने हिदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएसन की स्थापना की।१९२५ में काकोरी षड्यन्त्र काण्ड में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पुनः आजीवन कारावास की सजा हुई।इनकी आत्मकथात्मक करती बन्दी जीवन भारतीय क्रान्तिकारियो के लिए बाइबल बन गई।
 
१२०>विनायक दामोदर सावरकर (१८८३-१९६६):------------------
इनका लोकप्रिय नाम वीर सावरकर था।यह महान क्रांतिकारी थे तथा बाद में हिन्दू महासभा के नेता बने।१८९९ में इन्होंने प्रथम क्रांतिकारी सोसाइटी मित्र मेला (मित्र सभा) का गठन किया जिसका नाम १९०४ में अभिनव भारत सोसाइटी (नवीन भारत समाज) पर गया।१९०६ में यह समुद्र के रास्ते इंग्लैंड पहुचे और वहाँ श्यामजी कृष्ण वर्मा के नेतृत्व वाले क्रांतिकारी गुट में शामिल हो गए।१८५७ के शिद्रोह की ५०वी जयंती पर इन्होंने एक पुस्तक लिखी ,जिसमे इन्होंने इस विद्रोह को प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम कहा था।लन्दन में यह मदन लाल घिंगरा ,जिन्होंने कर्जन वायली की बम से हत्या की थी, के सहयोगी रहे।१९१० में इन्हें लन्दन से गिरफ्तार करके भारत लाया गया और यहां नासिक षड्यन्त्र काण्ड में इन पर मुकदमा चला।इन्हें दोहरे आजन्म कारावास का दण्ड दिया गया, जिसके अर्थ थे--५०वर्ष लम्बे का कठोर कारावास का दण्ड।
इन्होंने १९११ से १९२१ तक १० वर्ष अंडमान जेल में तथा तीन वर्ष दूसरी जेलो में बिताए।१९२४ में अपनी रिहाई के शीघ्र बाद ही इन्होंने समाज सुधार आंदोलन प्रारम्भ कर दिया।हिन्दू महासभ की भी सदस्यता ग्रहण की।१९३७ से १९४२ तक यह लगातार पांच वर्षो तक हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे।
 
 
१२१>छत्रपति साहू (महाराज )(१८७४-१९२२):----------------
कोल्हापुर के महाराजा भारत के सत्ताधारी राजाओ में सबसे पहले शासक थे,जिन्होंने तथाकथित पिछड़े वर्गो के समाजिक और धार्मिक सुधारो में गहन रूचि ली थी।इन्होंने अपनी ओर से जातीय बन्धनों की बेरियो को तोड़ने का भरसक प्रयास किया ओर जाती भेदों पर ध्यान दिए बिना सभी के लिए शिक्षा तथा सरकारी नोकरियो के व्दारा खोलने का प्रयास किया और जाती भेदों पर ध्यान दिए बिना सभी के लिए शिक्षा तथा सरकारी नोकरियो के व्दारा खोलने का प्रयास किया।इन्होंने बाल विवाह पर प्रतिबन्ध लगाने तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करने का कार्य किया।इनका सर्वाधिक उल्लेखनीय कार्य शिक्षा के क्षेत्र में था।इन्होंने कोल्हापुर में निशुल्क शिक्षा वाले अनेक स्कुल खोले तथा गरीबो के बच्चो के रहने के लिए कई निःशूल्क छात्रावासो का निर्माण कराया।यह पश्चिमी उदार शिक्षा के पक्षधर और आर्य समाज के अनुयायी थे।इनका विश्वास था की आर्य समाज समाजिक समस्याओ का सही समाधान प्रस्तुत करता है।मराठा मूल के होने के कारण महाराजा गैर-ब्राह्राणों की समस्याओ से पूरी तरह परिचित थे।भारतीय राजाओ में यह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपने राज्य में अस्पर्शयता पर रोक लगाने का साहस किया।शीघ्र ही यह गैर-ब्राह्राण आंदोलन के नेता बन गए और इन्होंने मराठो को अपने झंडे के निचे इकट्ठा किया।
१२२>सिंह अजित (म्रत्यु १६ अगस्त १९४७):--------------
आप प्रसिध्द शहीद सरदार भक्तसिंह के चाचा और सुप्रसिध्द क्रांतिकारी थे।आप लाला लाजपत राय के निकट सहयोगी रहे।आपको भी लाला लाजपत राय के साथ ही गिरफ्तार करके १९०७ में मांडले भेजा गया था।अपनी रिहाई के बाद आपने पेशवा नामक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया और क्रांतिकारी भारत माता समाज की स्थापना की।१९०८ में आप भारत में पलायन कर गए और १९४७ तक विभिन्न देशो में भर्मण करते हुए गदर पार्टी के लिए कार्य करते हुए सक्रिय रहे।स्वदेश वापस आने के शीघ्र बाद ही १६ अगस्त १९४७ को आपका निधन हो गया।
१२३>असुर सिंह (१८७२-१९१६):---------------------
स्वतन्त्रता सेनानी,क्रांतिकारी के रूप में ख्यात असुर सिंह ने पुलिस वालो की हत्याएं की तथा रेलवे लाइनों पर धरना दिया।दिल्ली-षड्यन्त्र योजना में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।१८ महीनों तक आप भूमिगत भी रहे।दिसम्बर १९१६ में लाहौर जेल इन्हें फांसी दे दि गई।
१२४>ऊधम सिंह (१८९९-१९४०):------------------------
पंजाब के क्रांतिकारी नेता।जलियांवाला बाग़ के नरसंहार का बदला लेने के लिए इन्होंने निर्दोष व्यक्तियों पर गोली चलाने का आदेश देने वाले नृशंस कप्तान माइकल ओ.डायर की लन्दन में मार्च १९४० में हत्या कर दि थी,जिसके लिए इन्हें गिरफ्तार करके म्रत्युदंड दे दिया गया।
१२५>डॉ पट्टाभि सीतारामैया (१८८२-१९५०):-------------------
प्रमुख राष्ट्रवादी तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सरकारी इतिहासकार।व्यवसाय से चिकित्सक।अखिल भारतीय कांग्रेस समिति तथा कांग्रेस कार्य समिति के लिए चुने गए।१९३९ में सुभाष चन्द्र बोस से कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हार गए।अगस्त १९४२ में वे गांधीजी व अन्य कांग्रेसी नेताओ के साथ गिरफ्तार कर लिए गए और लगभग तीन वर्ष तक जेल में रहे।
१२६>अल्लुरी सीताराम राजू (१८९७-१९२४):-----------------
जनजाति आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करने वाले यह प्रथम गैर-जनजाति नेता थे, १९२३-२४ में आंध्र प्रदेश के रम्या जनजाति विद्रोह को संगठित कर नेतृत्व प्रदान किया।इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेज सरकार को सेना तैनात करनी पड़ी।सेना के साथ मुठभेड़ में यह शहीद हो गए।
१२७>सूर्य सेन (१८९४-१९३४):--------------------------
पूर्वी बंगाल के क्रांतिकारी नेता ,जिन्होंने चटगांव रिपब्लिकन आर्मी का गठन किया ताकि सशस्त्र विद्रोह व्दारा चटगांव को अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त कराया जा सके तथा साथ ही इन्होंने साम्राज्यवादी गढ़ो पर हमला करना भी जारी रखा।योगजना के अंतर्गत १८ अप्रैल १९३० को चटगांव (अथवा भारतीय) रिपब्लिकन आर्मी ने सूर्य सेन के नेतृत्व में दो सरकारी शस्त्रागरो पर धावा बोला और चटगांव की टेलीफोन ,टेलीग्राफ लाइनों तथा रेल व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करके चटगांव को शेष भारत से विल्कुल अलग-थलग कर दिया।इन भीषण हमलो तथा घावो के बाद सूर्य सेन ने स्वतन्त्र राष्ट्रीय सरकार के गठन की घोषणा की।किन्तु इसका यह कार्य कम समय तक ही जारी रह पाया।लगातार असफल होने के बाद इन्होंने गुरिल्ला युध्द का सहारा लिया और अपनी क्रांतिकारी गतिविधियां समीपवर्ती जिलो तक फैला दी।तीन वर्ष के साहसिक संघर्ष के उपरान्त यह फरवरी १९३३ में अपने एक साथी के विश्वासघात के कारण पकड़े-गए और इन्हें म्रत्युदंड दे दिया गया।
१२८>ए.के.फजलुल हक (१८७३-१९६२):--------------------
यह व्यवसाय से वकील थे।आप ढाका में १९०६ में स्थापित अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के प्रमुख संस्थापको में रहे और निरन्तर मुस्लिम हिंत के लिए संघर्ष करते रहे।१९१६ से १९२१ तक यह अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष रहे।कांग्रेस और लीग के मध्य १९१६ में लखनऊ समझौता कराने में इनका प्रमुख योगदान था।इन्होंने १९१८-१९ में कांग्रेस के महासचिव के रूप में भी काम किया।लेकिन असहयोग आंदोलन को रोक दिए जाने के पश्चात इन्होंने कांग्रेस छोर दी।इन्होंने गोलमेज सम्मेलन (१९३०-३३)में मुस्लिम लोग का प्रतिनिधित्व किया।१९३७ में चुनाव के अवसर पर इन्होंने लीग से त्याग-पत्र दे कर कृषक प्रजा पार्टी के नाम से एक नई पार्टी का गठन किया और बंगाल में मस्लिम लीग के साथ मिली-जुली सरकार बनाई।१९३८-४३ के दौरान यह बंगाल के प्रधानमंत्री रहे।विभाजन के उपरान्त यह ढाका में बस गए।
१२९>लाला हरदयाल (१८८४-१९३९):----------------
यह महान क्रांतिकारी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में गदर पार्टी के संस्थापक थे।आक्सफोर्ड विश्वविधालय में अध्ययन करते समय आप श्यामजी कृष्ण वर्मा तथा वी.डी.सावरकर जैसे भारतीय क्रान्तिकारियो के संपर्क में आये। १९१३ में यह संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए तथा ब्रिटिश विरोधी प्रचार शुरू करने के लिए गदर नामक पत्र निकालने लगे।इसका प्रथम अंक १ नवम्बर १९१३ को निकला।मार्च १९१४ में इन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर स्विट्रजलैंड जाना पड़ा जहां इन्होंने एक अन्य ब्रिटिश-विरोधी समाचार पत्र बन्देमातरम निकाला।स्विटरजरलैंड से यह जर्मनी गए और भारत में सशस्त्र क्रान्ति लाने के लिए इन्होंने प्राच्य ब्यूरो खोला।संयुक्त राज्य अमेरिका के बर्कले विश्वविधालय में यह संस्कृत और दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए।
१३०>डेविड हरे (१७७५-१८४२):----------------------
यह मूलतः स्कॉटवासी थे।इन्होंने पश्चिमी शिक्षा के प्रचार के लिए और उन्नीसवी शताब्दी के पुनर्जागरण के लिए चार दशक कार्य करते हुए अपने जीवन का स्रवोत्तम हिस्सा देश पर न्योछाबर कर दिया।यंग बंगाल आंदोलन में इनका घनिष्ठ संबन्ध था।कलकत्ता में इन्होंने हिन्दू कालेज की स्थापना की।इन्ही के प्रयासों से कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई (फरवरी १८३५) ।इन्होंने कई स्कुल और कॉलेज की स्थापना की तथा उन्हें उदारतापूर्वक दान दिया।
१३१>डॉ.जाकिर हुसैन(१८९७-१९६९):---------------------------
इन्होंने शिक्षा की वर्धा योजना तैयार की थी।जामिया मुस्लिम विश्वविधालय तथा अलीगढ के उप-कुलपति (१९२६-५३) रहे।विहार के राज्यपाल (१९५७-६२) रहे तथा आपने भारत के उपराष्ट्रपति (१९६२-६७) के पद पर कार्य किया।१९६७ में आप भारत के राष्ट्रपति बने।राष्ट्रपति पद पर ही इनकी म्रत्यु हो गई।
१३२>डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार (१८९९-१९४०):--------------------
यह मेडिकल स्नातक थे।इन्होंने अपना पूरा जीवन राजनितिक एंव राष्ट्रवादी गतिविधियो में लगा दिया।अपने जीवन के प्रारंभ में इनका संबन्ध कांग्रेस से था तथा तिलक के नेतृत्व में इन्होंने होम रूल आंदोलन में सक्रियतापूर्वक भाग लिया।लेकिन इनका महानतम योगदान २७ सितम्बर १९२५ को विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की स्थापना था।
१३३>एलेन आक्टोवियन ह्यूम (ए.ओ.ह्यूम )(१८२९-१९२२):--------------------
यह भारत में ब्रिटिश सिविल सेवा के सदस्य थे।१८८२ में अपनी सेवा निव्रती के उपरान्त इन्होंने भारत के राजनितिक अधिकारों के लिए कार्य किया।आप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जनक तथा संथापक के रूप में जाने जाते है।ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रचनात्मक वर्षो में एक मार्गदर्शी मनरवी का कार्य किया। इन्होंने चिकित्सा तथा शल्यक्रिया विज्ञान का अध्ययन किया था और आप सीविषयात प्रकृति विज्ञान तथा वनस्पति शास्त्री भी थे।
 
 
सुभ समाप्ति
सत्य प्रकाश

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