बौध्द धर्म
ईसा पूर्व की छठी शताब्दी का दुसरा महत्त्वपूर्ण धर्म बौध्द धर्म था।इस धर्म का प्रवर्त्तन भी तत्कालीन धार्मिक जीवन में व्याप्त कुप्रथाओ के विरोध में हुआ था।बौद्ध:----------->
-----------जीवन चरित्र:------>बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुध्द थे।उनका जन्म ईसा पूर्व सन ५६३ ई.में हिमालय की तराई में स्थित शाक्य गणतन्त्र के प्रमुख राजा शुध्दोधन के यहां हुआ था।इसकी माता का नाम मायादेवी था।लुम्बनी वन में मायादेवी ने बुध को जन्म दिया।पुत्र जन्म के बाद ही मायादेवी का स्वर्गवास हो गया था,अतःउनका पालन-पोसन प्रजापति गौतमी ने शाक्य राजधानी कपिलवस्तु में किया।बुध का बचपन का नाम सिध्दार्थ था।युवावस्था में उनका विवाह यशोधरा नामक सुंदर राजकन्या के साथ हुआ था।यशोधरा ने राहुल नामक पुत्र को जन्म दिया।
गौतम की वैरागी आत्मा अधिक समय तक विलास में डूबी न रह सकी।जीवन, मृत्यु और मोक्ष के शाश्वत प्रश्नों ने उन्हें बेचैन कर दिया।अंत में उन्होंने गृहत्याग का निश्चय कर लिया।एक रात्रि को वे पत्नी और पुत्र को सोता हुआ छोड़कर गृहत्याग कर निकल पड़े।बौद्ध साहित्य में यह घटना बुध का "महाभिनिष्क्रमण" कहलाई।गृहत्याग के बाद गौतम वीतराग संन्यासी बन गए
।उस काल के प्रसिध्द दर्शनिक रिषि आलार कालाम और उद्रक के आश्रम में उन्होंने तप ध्यान और योग साधना की।राजगृह के पास स्थित उरुवेला वन में उन्होंने अपने कुछ साथियो के साथ कठोर तपस्या की।तप के कारण उनका शरीर हड्डियों का ढाँचामात्र रह गया, पर इससे भी उनके आशान्त मन को शान्ति नही मिली।गौतम ने तपस्या को निरर्थक समझ उसका परित्याग क्र दिया।भोगवादी और तपभरष्ट मानकर उनके साथियो उनके साथीयो ने उनका साथ छोर दिया।एक दिन गया में पीपल के व्रक्ष के निचे बैठकर चिंतन कर रहे थे।उन्होंने समाधि लगाई।समाधि के आठवे दिन वैसाखी की पूर्णिमा के रात उन्हें ज्ञान रूपी प्रकाश प्राप्त हुई।वे 'बुध्द' अथवा जागृत कहलाए और पीपल के पेड़ 'बोधव्रक्ष' कहा जाने लगा।गया को उनके नाम पर 'बोध गया' कहा जाने लगा।
बुध्दतत्व प्राप्त करने बाद वे और उनके शिष्यो के साथ शिक्षा व संस्कृति के केंद्र काशी पहुचे।वहाँ धर्म का प्रचार करने के बाद मगध की राजधानी राजगृह गए।वहाँ उन्होंने अनेक श्रमण,सन्यासियों और विव्दानों को अपना अनुयायी बनाए।मगध सम्राट बिम्बिसार,अजातशत्रु, महरानी चेलना और सारिपुत्त, महा-मौद्गलायन आदि उनके शिष्य वन गए।अस्सी वर्ष की आयु तक भगवान तथागत ने उत्तर भारत के अनेक स्थानों पर घूम-घूम कर स्वयं अपने धर्म का प्रचार किया।तैतालिस वर्ष तक धर्म प्रचार करने के बाद जब वे मल्ल गणतन्त्र की राजधानी पहुचे तो वहाँ के "शाल वन" में उन्होंने अपने शरीर त्याग दिया।सन ४०३ ईसवी पूर्व में उन्होंने अस्सी वर्ष की आयु में वैसाखी पूर्णिमा के दिन अपने प्राण त्यागे।इसे बौद्धओ ने "महापरिनिब्बान " माना।
---------------बुद्ध की शिक्षाये :----->
पीड़ित मानवता के लिए मोक्ष के व्दारा तथागत बुध्द ने खोल दिए।उन्होंने धार्मिक आदर्शो का सरलीकरण कर दिया।तथागत गौतम बुध्द ने चार आर्यसत्य जन-साधारण के सामने रखे----
१>दुःखवाद:- संसार दुःखवाद है।
२>दुःख का कारण:- तृश्णा ही दुःख का कारण है।
३>दुःख निरोध:- दुःख के कारण का ज्ञान हो जाने पर उसका निरोध होना चाहिए।
४>दुःख निरोध मार्ग:- दुःख दूर करने के लिए 'मझिम निकाय' या 'अष्टांगिक मार्ग' का पालन करना चाहिए।
तथागत बुद्ध ने आत्मिक शान्ति के लिए अष्टागिक मार्ग का उपदेश दिया---------सम्यक दृष्टि,सम्यक संकल्प,सम्यक वचन,सम्यक कर्म,सम्यक जीविका,सम्यक व्यायाम,सम्यक स्मृति,सम्यक समाधि॥
यह अष्टांगिक मार्ग तृश्णा का नाश करने में सहायक होता है।तृश्णा ही दुःख का कारण है।अष्टांगिक मार्ग के साथ नैतिक आचरण के पालन का उपदेश भी बुध्द ने दिया--------
१>प्रज्ञा-आत्मा के कल्याण के लिए ज्ञान व श्रीध्द। होना जरूरी है।
२>शील को भी जीवन में उतारना चाहिए।
३>सत्य का पालन और झूठ का परित्याग।
४>अहिंसा को अपनाना।
५>अपरिग्रह के व्दारा संग्रह-व्रत्ति से दूर रहना क्योकि परिग्रह तृश्णा को जन्म देती है।
६>आस्तेय अर्थात चोरी न करना।
७>ब्रह्राचार्य का पालन।
८>स्त्री व स्वर्ण का त्याग।
९>कोमल शिष्या का त्याग।
१०>असमय भोजन का त्याग।
११>नृत्य-संगीत का त्याग।
------------बौद्ध धर्म की दार्शनिकता:-------->
वह युगधर्म के साथ ही दर्शन का युग भी था।आत्मा परमात्मा,कर्म और पुनर्जन्म पर वयाख्ये की जाती थी, परन्तु तथागत बुध्द ने इन पर कोई चर्चा नहीं की।उन्होंने अपने शिष्य आनन्द को कहा था-----"हे आनन्द तुम अपना दिप आप बनो। मोक्ष के लिए सतत प्रयत्नशील रहो अपने कर्मो से अपना उध्दार करो"।
----------------बौद्ध धर्म की देन:------>
१>पुनर्जन्म का सिध्दांत:- तथागत बुद्ध हिन्दुओ के समान पुनर्जन्म के सिध्दान्त में विश्वास करते थे।वे मानते थे की आत्मा जन्म-मरण के चक्र से बंधी है।मोक्ष की प्राप्ति तक वह जन्म लेती है।जन्म-मरण के इस चक्र से आत्मा को छुटकारा दिलाना जरूरी है जो केवल मोक्ष सम्भव है।
२>कर्म-सिध्दांत:-- गौतम बुद्ध कर्म सिद्धान्त को भी स्वीकार करते थे।वे मानते थे की अच्छे कर्मो का अच्छा फल मिलता है और बुरे कर्म कुफल देते है।सुकर्मो से मोक्ष का मार्ग परास्त होता है।
३>ईश्वर का अस्तित्व :- ईश्वर के अस्तित्व के बारे में बुद्ध ने कुछ नहीं कहा ।उन्होंने एक बार अपने शिष्य आनन्द से कहा,"ईश्वर या किसी अन्य देवता पर आधारित होने के बजाय अपने कर्मो से ही अपना उध्दार करना चाहिए।
४>कार्य-कारण नियम :- बौद्ध मानते थे की यह संसार कार्य और कारण नियमो के आधार पर चलता है।प्रत्येक वस्तु और घटना किसी-न-किसी कारण से होती है।कारण का निवारण हो सकता है,कारणों का टाला जा सकता है।इसे पर्सीत्य समुत्पाद का सिध्दांत भी कहते है।
५>आत्मा का स्वरूप :-बौध्द मत आत्मा के स्थायित्व में विश्वास नहीं करता। आत्मा को परिवर्तनशील मानते है।
६>परिवर्तनवाद एंव क्षणिकवाद:--बौद्ध संसार हर वस्तु को क्षणिक और परिवर्तनशील मानते है।विश्व में कुछ भी स्थायी और अपरिवर्तनशील नहीं है।अस्थायित्व और परिवर्तंता जगत का नियम है।
७>मोक्ष या निर्वाण :- बुद्ध मोक्ष को मानव-जीवन का चरम लक्ष्य मानते थे।मोक्ष वासना और तृश्णा के नाश से ही सम्भव है।इसके लिए अष्टांगिक मार्ग को अपनाना चाहिए।
८>जातिवाद का विरोध:-- गौतम बुद्ध ने मोक्ष के व्दारा सभी के लिए खोल दिए।उन्होंने जाती-प्रथा को अस्वीकार किया था।वे जाती-प्रथा के भेदभाव के विरुध्द थे।
बौद्ध का मत एक नैतिकतावादी धर्म है।इसकी रुरेखा स्पष्ट दर्शाती है की वह धार्मिक आडम्बर,कर्मकांड और पूजा-उपासना की जटिलताओं से परे है।
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